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________________ अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों से पाश्चात्य जगत् में भारतीय विद्याओं का जो प्रचार व प्रसार हुआ है उससे मानवीय चिन्तन के इतिहास को नवीन दिशाएं मिली हैं परन्तु भारतवर्ष में ये प्राच्य विद्याएं 'पात्रता' के अभाव में सिसक रही हैं। भारतवर्ष के बुद्धिजीवियों को चाहिए कि पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ भारतीय ज्ञान-विज्ञान को भी ज्ञानार्जन की प्रक्रिया के साथ इस प्रकार नियोजित किया जाए जिससे प्राच्य विद्याओं के संवर्द्धन व विकास को प्रोत्साहन मिल सके । भारतीय विद्या को पृथक् एवं स्वतन्त्र रूप से विकसित करने का दायित्व संस्कृत आदि प्राच्य भाषाओं के विद्वानों पर ही छोड़ दिया गया है और ज्ञान-विज्ञान की राष्ट्रीय प्रतिभाएं इस ओर उदासीन हैं। गणित, भौतिक विज्ञान, समाज विज्ञान की अवधारणाओं से अनभिज्ञ संस्कृतज्ञ प्राच्य तकनीकी विद्याओं का कैसे उद्धार कर सकेंगे? और प्राच्य भाषा और साहित्य से अनभिज्ञ वैज्ञानिक, समाज वैज्ञानिक भी प्राच्य विद्याओं का क्या उपकार कर सकेंगे? यह एक राष्ट्रीय प्रश्न चिह्न बन कर उभर गया है। ज्ञान-विज्ञान की संतुलित अध्ययन पद्धति ही इसका कोई समाधान ढूंढ सकती है । प्रस्तुत खण्ड में पाठ-संशोधन प्रेस कॉपी तैयार करने तथा प्रूफ संशोधन आदि के प्रति यद्यपि पूर्ण सावधानी रखी गई फिर भी अनेक तकनीकी कारणों से कुछ त्रुटियाँ भी रह गई हैं । प्रूफ संशोधन की दृष्टि से कुछ भूल सुधार अपेक्षित हैं। डा० मुकुट बिहारी लाल अग्रवाल के प्रारम्भिक जनप्रन्थों में बीज गणित नामक लेख की पृष्ठ संख्या १६ पंक्ति ६ में a" के स्थान पर amxm छप गया है । पंक्ति १४ में 4* के स्थान पर a. और पंक्ति १५ में a के स्थान पर छप गया है। उसी लेख के पष्ठ 21 में अन्तिम फार्मूले का सही रूप है m+ m b(c+d) xp (c+d) b-(a+b)c पृ० २५ पंक्ति ६ में शुद्ध फार्मूला इस प्रकार पढ़ा जाना चाहिए पृ० २५ की अन्तिम पंक्तियों का समीकरणीय शुद्ध रूप इस प्रकार है (1/4)xx 2Vx+15=x (3/4)x-21-15=0 सम्पादकीय दायित्व प्रस्तुत खण्ड के तकनीकी विद्याओं गणित, ज्योतिष शास्त्र आदि से सम्बद्ध लेखों का सम्पादन कार्य प्राचीन भारतीय गणित के विशेषज्ञ प्रो० पी० सी० जैन द्वारा सम्पन्न हुआ है। उन्हीं के द्वारा संकेतित भूल सुधारों की ऊपर चर्चा कर दी गई है । ग्रन्थ के प्रधान सम्पादक डॉ. रमेशचन्द्र गुप्त ने शेष प्राच्य विद्या सम्बन्धी लेखों के सम्पादकीय दायित्व को पूरा किया है । मोहन चन्द संस्कृत विभाग, रामजस कालेज दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन पन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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