SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 875
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन जगत्-उत्पत्ति और आधुनिक विज्ञान प्रो० जी० आर० जैन "तारीफ उस खुदा की जिसने जहाँ बनाया" उर्दू के किसी शायर ने उपरोक्त शब्द कहे हैं और यही भावना मानव जाति के लगभग सभी व्यक्तियों ने व्यक्त की है। अपने चारों ओर इस विचित्र संसार को देख कर हर मनुष्य के मन में यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि इस संसार को किसने बनाया और कैसे बनाया? प्रत्येक वस्तु का कोई न कोई बनाने वाला होता है, बिना बनाये कोई चीज नहीं बन सकती । इस भव्य संसार को बनाने और धारण करने वाली अनन्त शक्ति की धारक, सर्वज्ञ और सर्वव्यापी कोई महान शक्ति होगी, जिसे सर्वसाधारण ने खुदा, परमात्मा या भगवान का नाम दिया। किन्तु कुछ ज्ञानियों के मन में यह प्रश्न भी उठा कि वह महान शक्ति कहाँ से आयी ? उस शक्ति को बनाने वाला कौन था? उस शक्ति ने कहाँ बैठ कर ससार की रचना की? कब रचना की और किस पदार्थ से रचना की, और वह पदार्थ कहाँ से आया ? (शन्य से तो पदार्थ की उत्पत्ति होती नहीं)। इन सब समस्याओं का हल जैन धर्म के आचार्यों ने किस प्रकार किया, यह विवेचना करना इस लेख का उद्देश्य है। हिन्दू शास्त्रों में काल की गणना इस प्रकार की गयी हैकलियुग 4,32,000X1= 4,32,000 वर्ष द्वापरयुग 4,32,000X2= 8,64,000 वर्ष त्रेतायुग 4,32,000X3-12,96,000 वर्ष सतयुग 4,32,000X4=17,28,000 वर्ष इस प्रकार 1 महायुग =4,32,000X10=43,20,000 वर्ष (टोटल) 71 महायुग =1 मन्वन्तर=30,67,20,000 वर्ष 14 मन्वन्तर=4,29,40,80,000 वर्ष प्रत्येक मन्वन्तर के प्रारम्भ में और उसके बीत जाने पर बाद में, सतयुग में जितने वर्ष होते हैं, उतने वर्षों तक अर्थात् 4,32,000X4=17,28,000 वर्षों तक पृथ्वी जल में डूबी रहती है। इसे आजकल के विज्ञान की भाषा में Glacial Epoch कहते हैं । अतएव 14 मन्वन्तरों में पृथ्वी 15 बार पानी में डूबी रहो, अर्थात् 17,28,000X15=2,59,20,000 वर्षों तक पानी में डूबी रही। 14 मन्वन्तर के सम्पूर्ण काल को सामान्य कल्पकाल कहते हैं। अतः एक सामान्य कल्पकाल के वर्षों की संख्या=14 मन्वन्तरों की वर्ष-संख्या-पृथ्वी के 15 बार पानी में डूबे रहने की वर्ष-संख्या=4,29,40,80,000+2,59,20,000=4,32,00,00,000 वर्ष (चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष) =43,20,000 (महायुग)x 1000 अर्थात् एक सामान्य कल्पकाल एक हजार महायुगों के बराबर होता है। इसे ब्रह्मा का एक 'अहोरात्र' भी कहा जाता है । और इसी गणना से अनुसार ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष है (एक वर्ष = 360 दिन) । 12 सामान्य कल्पकाल =1 देव-युग 2,000 देव-युग =1 ब्रह्म-अहोरात्र 360 ब्रह्म-अहोरात्र -1 ब्रह्म-वर्ष 43,20,000 ब्रह्म-वर्ष =1 ब्रह्म-चतुर्युगी जन प्राच्य विद्याएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy