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________________ MEMBER OF PARLIAMENT (RAJYA SABHA) SECRETARY Congress (1) Party in Parliament: 16, Park Area New Delhi-110005 मेरा यह सौभाग्य है, आज से लगभग ३० वर्ष पूर्व प्रायुवा अवस्था के उषा काल में परम पूज्य १०८ आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से मेरा सम्पर्क दिल्ली में हुआ। उनकी त्याग और तपस्यापूर्ण चर्या के निकट सम्बन्ध से निश्चय ही जन-सेवा की भावना का प्रादुर्भाव होता है । अडिग निष्ठा के साथ किसी कार्य में संलग्न होना और उसमें सफलता प्राप्त करने तक लगे रहना गुरुवर्य के श्रीचरणों में बैठकर अच्छी तरह सीखा जा सकता है। तीर्थकर परम्परा में स्वात्मानुभव से पूर्वाचार्यों द्वारा रचित प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश जैन साहित्य में आत्मकल्याण, जनकल्याण और उन्नति के प्रचुर साधन स्थान-स्थान पर उपलब्ध हैं । आचार्य महाराज ने उनका गम्भीर अध्ययन और मनन करके विपुल साहित्य का सृजन किया है, जिसके द्वारा आत्मिक शांति का मुमुक्षु सांसारिक वासनाओं से विमुख होकर शान्ति के वास्तविक मार्ग का चयन कर सकता है। अपने वर्तमान जीवन में ५१ वर्षीय अविराम तपस्या, त्याग और समता से ओतप्रोत साधु जीवन में उन्होंने प्रमुख भारतीय भाषाओं को अपने सुगम उपदेशों का माध्यम बनाया है और इसके द्वारा उन्होंने देश में एकता को दृढ़ किया है, अनेकों जैन और अजैन मानवों को अहिंसा और सदाचार के मार्ग पर लगाकर उद्धार किया है और प्राणिमात्र का कल्याण किया है। उनकी तप-साधना के ५१ वर्ष समाप्त होने पर “आस्था और चिन्तन" अभिनन्दन ग्रंथ समता, सदाचार और ज्ञानवर्धन के लिए एक प्रकाश दीप बनेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। पूज्य आचार्यश्री के चरणों में श्रद्धासहित नमिति । जे० के० जैन आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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