SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 713
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पिता (एफ० ह्वी० लौरेंज) बोले- मेरी प्यारी बेटी मैंने तो कभी किसी हब्शी बच्चे को नहीं पीटा है। मा बोली पर वह तो मेरे दूसरे पिताजी थे। ज्यों ही उस लड़के को पिताजी ने पीटना शुरू किया, वह लड़का मुझे बुलाता हुआ चिल्लाने लगा --- अरे सिन्हा- जिन्हा । मुझे बचाओ। मैंने तुरन्त पिताजी से निवेदन किया- उसे छोड़ दो और फिर वह पानी भरने चला गया। एफ० ही ० लौरेंज ने पूछा- तो क्या वह नाले पर पानी भरने चला गया । मार्टा ने कहा—न पिताजी ! वहां आसपास में कहीं नाला नहीं था, वह कुए से पानी लाता था। पिता ने पूछा- बेटी, वह सिन्हाजिन्हा कौन थी! मार्टा ने कहा- वह तो मैं ही थी। मेरा दूसरा नाम भी था। मुझे मारिया भी कहते थे और एक नाम और भी था जो कि मुझे अभी याद नहीं है । I इसके पश्चात् तो मार्टा ने और भी अनेक बातें अपने पूर्वजन्म के सम्बन्ध में बताईं। उसने यह भी बताया कि उसको इस जन्म की माता ईदा लोरेंज उसके पूर्व जन्म में सखी थी। वह ( सिन्हा - जिन्हा ) अपनी सखी के घर आती जाती रहती थी और उस दौरान वह लीला को खिलाती थी तथा उसे गोद में उठाकर घुमाती थी। एफ० ह्वी० लौरेंज के पुत्र कार्लोस की वह ( सिन्हा - जिन्हा ) धर्म माता बनी थी। जब ईदा उसके पर आती तो वह उसके लिए काफी बनाती और फोनोग्राफ बजाती उसके पूर्वजन्म के पिता आयु में एफ० सी० लौरेंज से बड़े थे। लम्बी दाढ़ी रखते थे तथा बड़ी कर्कश आवाज में बोलते थे। उसकी शादी नहीं हुई थी, पर वह जिस पुरुष से प्रेम करती थी उसके पिताजी उसे पसन्द नहीं करते थे । उस पुरुष ने आत्म हत्या कर ली। इसके बाद एक दूसरे व्यक्ति से उसका प्रेम हो गया। उसे भी उसके पिताजी पसन्द नहीं करते थे। इससे वह बहुत दुःखी और निराश हो गई। उसके पिता ने उसे खुश करने के लिए समुद्र तटीय प्रदेश में घूमने-फिरने का कार्यक्रम बनाया जहां उसने शरीर के प्रति लापरवाह होकर ठंडी और नम हवा से अपर्याप्त वस्त्रों के साथ घूमना शुरू किया और उसके परिणाम स्वरूप उसे टी० बी० की बीमारी हो गई। इस बीमारी के बाद कुछ ही महीनों में उसकी मृत्यु हो गई। जब वह मृत्यु - शय्या पर थी, उसकी प्यारी सखी ईदा उसके पास थी । उस समय उसने ईदा से बताया कि मैं जान-बूझकर बीमार हुई थी, मैं मरना चाहती थी। मरने के बाद में तुम्हारी पुत्री के रूप में पुनः जन्म लूंगी और बोलने जितनी उम्र होनेपर पूर्वजन्म की बातें तुम्हें बताऊंगी, जिससे तुम्हें विश्वास हो जाएगा कि सिन्हा- जिन्हा ही तुम्हारी पुत्री बनी है। सिन्हा- जिन्हा की मृत्यु सन् १९१७ अक्टूबर माह में हुई थी, जिसके लगभग दस महीने पश्चात् अर्थात् १४ अगस्त १९१८ को का जन्म हुआ था। मार्टा ने लगभग १२० बातें अपने पूर्वजन्म के सम्बन्ध में बताईं जिनमें से कुछ बातें तो ईदा ( मार्टा की माता) और एफ०ह्वी०लौरेंज जानते थे । कुछ बातें ऐसी भी थी जिनका इनको पता नहीं था पर उसकी पुष्टि सिन्हा- जिन्हा के अन्य पारिवारिक सदस्यों ने की । सन् १९६२ में जब एक मनश्चिकित्सक एवं परामनोवैज्ञानिक डॉ० ईयान स्टीवनसन ने मार्टा से भेंट की, उस समय भी उसे अपने पूर्वजन्म की अनेक बातें याद थीं। ऐसी एक दो या दस बीस नहीं, बारह सौ से भी अधिक घटनाएं विश्व भर में विभिन्न देशों में प्रकाश में आई हैं । डॉ० कलघटगी ने भी एक सन्त सद्गुरु केशवदासजी के द्वारा बताई गई दो घटनाओं का उल्लेख किया है। एक में इटली के एक डेन्टिस्ट डॉ० गेस्टोन द्वारा अपना पूर्वजन्म भारत में कांचीपुरम स्थित किसी मन्दिर के पुजारी के रूप में बताया तथा मन्दिर की सम्पूर्ण पूजाविधि का ज्ञान होने का दावा किया तथा दूसरी घटना में न्यूयार्क में एक नीग्रो व्यक्ति ने स्वामी केशवदासजी की सभा में अपनी पूर्वजन्म की स्मृति के आधार पर “ललित सहस्रनाम" कण्ठस्थ रूप से सुनाना प्रारंभ किया तथा उसने भी अपना पूर्वजन्म भारत में बताया। ऐसी ही दो घटनाएं मेरे व्यक्तिगत अनुभव में आई हैं। एक घटना में अहमदाबाद के एक बालक मनोज द्वारा अपने पूर्वजन्म के समग्र परिवार को पहचानने की बात सामने आई । मनोज ने, जो कि सात वर्ष का बालक था, अपने पूर्वजन्म की पत्नी तथा दो बच्चों के विषय में जानकारी दी तथा उन्हें इस जन्म में पहचान लिया और मनोज के शरीर पर गोली के चिह्न भी हमने देखे, जो उसके बयान अनुसार उसके पिछले जन्म में लगी थी। मनोज का एक हाथ बड़े आदमी की तरह पूरी तरह मोटा और विकसित था तथा दूसरा हाथ साधारण बच्चे की तरह था । ( गोली के निशान की चर्चा इसी पत्र में आगे की गई है । ) 1 एक दूसरी घटना में जयपुर की एक लड़की अमिता (उम्र १० वर्ष ) से साक्षात्कार हुआ जो अपनी छोटी उम्र से ही अपने को महारानी गायत्रीदेवी कॉलेज की एम० ए० की पोलिटिकल साइन्स विषय की छात्रा बताती थी । उसने अपने पुराने घर और परिवार को खोज निकाला तथा छत पर से गिरने के कारण अपनी मृत्यु का बयान दिया, जो जांच करने पर सही पाया गया । १. टी० जी० कलघटगी, कर्म एण्ड रिवर्थ, पृ० ६० जंन तत्व चिन्तन आधुनिक संदर्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only १७ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy