SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 714
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गवेषणा की पद्धति : सामान्य रूप से पूर्वजन्म की स्मृति छोटे बच्चों को होती है। अढ़ाई-तीन वर्ष की अवस्था से लेकर आठ-दस वर्ष की अवस्था के बच्चे ही आमतौर पर इस क्षमता के धनी पाये गये हैं । कहीं-कहीं तो दस महीने की आयु में भी बच्चा यत्किचित् अभिव्यक्ति देना शुरू कर देता है। आयु बढ़ने के साथ साधारणतया यह क्षमता क्षीण होती जाती है । अपवादरूप में बड़ी आयु वालों में भी पूर्वजन्म-स्मृति उपलब्ध होती हुई पाई जाती है। आमतौर से पूर्वजन्म-स्मृति वाला बच्चा जिसे हम "जातक" (Subject) कह सकते हैं, जब बोलना सीख जाता है, तब वह अपने पूर्वजन्म के विषय में कुछ-कुछ बातें बताना शुरू कर देता है। प्रायः तो माता-पिता ऐसी बातों पर ध्यान ही नहीं देते या उसे केवल प्रलाप या बकवास समझ लेते हैं। पर, जब जातक अपनी बात को दोहराता ही रहता है या बल देता रहता है, तब माता-पिता या पारिवारिक लोगों का ध्यान उस ओर केन्द्रित होता है । बहुत बार तो स्वयं ही पूर्वजन्म के घटना स्थल पर पहुंच जाते हैं तथा जातक द्वारा बताई गई बातों की सत्यता की जांच करते हैं। कभी-कभी ऐसा नहीं हो पाता। गवेषक लोगों तक जब ऐसी बात पहुंचती है, तब वे जांच हेतु जातक के घर पहुंच जाते हैं। वहां वे जातक का पूरा बयान ले लेते हैं। इसके अतिरिक्त भी जिन व्यक्तियों का सम्बन्ध घटना से होता है, उन सबके बयान ले लिए जाते हैं। फिर जिस स्थान में जातक अपना पूर्व जन्म आदि बताता है, वहां जाकर उन परिवार वालों के बयान लिए जाते हैं। बयानों के साथ-साथ गवेषक लोग प्रश्नों और प्रतिप्रश्नों के द्वारा भी तथ्य एकत्रित करते हैं। बयानों और साक्षियों के परीक्षण के पश्चात जो तथ्य उभरते हैं, उन पर चिन्तन किया जाता है। चिन्तन के लिए कई संभावनायें की जाती हैं। सबसे पहले तो धोखाधड़ी या पूर्व-नियोजित होने की संभावना को लेकर तथ्यों पर चिन्तन किया जाता है—सारे बयान, साक्षियों के उत्तर, घटनास्थलों की भौगोलिक परिस्थिति आदि के आधार पर यह निश्चित करना कठिन नहीं होता कि घटना वास्तविक है या धोखा देने के लिए घड़ी हुई है। अब तक जिन घटनाओं की जांच की गई है, उसमें धोखा-धड़ी की घटनाएं नगण्य संख्या में पाई गई हैं। दूसरी संभावना यह की जाती है कि दोनों परिवारों के बीच प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी प्रकार का संबंध है या नहीं। जहां इस प्रकार की संभावना होती है, वहां पूर्वजन्म संबंधी बातों को इस कसौटी पर कसा जाता है कि ये बातें वस्तुत: पूर्वजन्म-स्मृति पर आधारित हैं या वर्तमान जन्म में ही किसी माध्यम से ज्ञात की गई हैं। जहां दोनों परिवारों में सामान्य मित्र, संबंधी आदि होते हैं वहां इस बात को बहुत सूक्ष्मता से तोला जाता है। जिन घटनाओं में उक्त संभावना का भी कोई स्थान नहीं रह जाता, वहां यह भी एक संभावना की जाती है कि टेलीपेथी (विचारसंप्रेषण या दूरज्ञान) की सहायता से कोई दूसरे व्यक्ति के जीवन की बात बताता हो । इस प्रकार जो भी अन्य सामान्य संभावना की जा सकती है, उसे पहले ध्यान में रखा जाता है, और उसके आधार पर ही अंतिम निष्कर्ष निकाला जाता है। अब तक की जांच की गई अधिकांश घटनाओं में उक्त प्रकार की कोई भी संभावना सही नहीं पाई गई। इस आधार पर ही ऐसी घटनाओं को परासामान्य (पेरा नारमल) की कोटि में माना गया है। पूर्वजन्म की अद्भुत बातें: अढ़ाई तीन या पांच साल के बच्चे, जो पूर्वजन्म की स्मृति के आधार पर बातें बताते हैं, उनमें बहुत सी बातें काफी अद्भुत और आश्चर्यकारक होती हैं । सामान्यतया ऐसे बच्चे अपने पूर्वजन्म का नाम, गांव का नाम, माता-पिता या निकट पारिवारिक लोगों के नाम, अपने निवास स्थान संबंधी जानकारी आदि देते ही हैं, पर उसके साथ-साथ ऐसी गुप्त बातों का भी वे रहस्योद्घाटन करते हैं, जिसके विषय में उस मृतात्मा के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को कुछ भी ज्ञात नहीं होता । जैसे-एक घटना में एक जातक (बिशनचंद) ने अपने पूर्वजन्म में पिता की ऐसी छिपी संपत्ति का पता बताया, जिसके विषय में किसी को पता नहीं था। कुछ घटनाओं में ऐसी बातें भी जातक द्वारा बता दी जाती हैं, जिनकी जानकारी केवल एक ही अन्य व्यक्ति को होती है। जैसे अलास्का में घटित एक घटना में अपने पूर्वजन्म में जातक (विलियम जार्ज) ने अपनी पुत्रवधु को एक घड़ी दी थी जिसके विषय में और किसी को पता नहीं था। वर्तमान जन्म में उस घड़ी को जातक ने पहचान लिया। १. साधना द्वारा या हिप्नोसिस द्वारा भी पूर्वजन्म-स्मृति-ज्ञान उत्पन्न कराया जा सकता है, ऐसी घटनाएं भी मिलती हैं। के० एन० जयतिलक ने बौद्ध त्रिपिटकों में प्राप्त जातिस्मृति की घटनाओं की प्रामाणिकता की पुष्टि में उक्त घटनाओं का उल्लेख किया है । देखें-अर्ली बुद्धिस्ट थ्योरी ऑफ नॉलेज, पृ० ४५६ २. Twenty Cases Suggestive of Reincarnation, पृ० २१३ आचार्य रत्न श्री देश भूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy