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उदाहरणस्वरूप हम विर्जिनिया विश्वविद्यालय के अन्तर्गत चल रहे कार्य की चर्चा यहां कर रहे हैं। विर्जिनिया विश्वविद्यालय के अन्तर्गत स्कूल ऑफ मेडिसिन' में सायक्वाट्री विभाग का 'परामनोविज्ञान संभाग' व्यवस्थित रूप से इस शोध कार्य में लगा हुआ है। डॉ० ईयान स्टीवनसन, एम० डी०, स्वयं एक सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक हैं, तथा 'कार्लसन प्रोफेसर ऑफ सायक्याट्री' के रूप में इस विभाग का निदेशन कर रहे हैं। डॉ० स्टीवनसन एवं उनके निदेशन में शोधरत दल विश्व के विभिन्न देशों में घटित पूर्वजन्म - स्मृति की घटनाओं के सर्वांगीण अध्ययन एवं शोध में संलग्न हैं। भारत के अतिरिक्त सिलोन, बर्मा, थाईलैण्ड, लेबनान, ब्राजील, अलास्का आदि देशों से उक्त प्रकार की घटनाओं की जानकारी उन्हें प्राप्त हुई हैं तथा इस सिलसिले में अनेक बार इन देशों की यात्राएं की हैं।' डॉ० स्टीवनसन मनोविज्ञान (सायकोलोजी) के अभिनव विश्लेषणों और सिद्धान्तों के प्रकाण्ड विद्वान् हैं। उनका समग्र अध्ययन एक गहरी और पैनी दृष्टि लिए हुए है। पटनाओं के जांच कार्य में उनमें वकील का चातुर्य और तर्क की प्रबलता स्पष्ट परिलक्षित होती है। विभिन्न देशों की संस्कृति, धर्म, दर्शन, इतिहास, भूगोल आदि से सम्बन्धित अपेक्षित ज्ञान की मौलिक एवं पूर्ण जानकारी भी वे रखते हैं । प्रस्तुत शोध-पत्र में डॉ० स्टीवनसन का इतना विस्तृत परिचय इस दृष्टि से दिया जा रहा है कि उनके द्वारा किया गया घटनाओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन किस प्रकार के व्यक्ति द्वारा किया गया है, इससे पाठक परिचित हो सकें ।
डॉ० स्टीवनसन ने इस विषय में लिखना सन् १९६० से प्रारम्भ किया था। वैसे, इस विषय पर अन्य गवेषक एवं लेखक इससे पहले भी गवेषणा कर चुके हैं और काफी कुछ लिख चुके हैं। जैसे- ई० डी० वाकर (E. D. walker) द्वारा लिखित ग्रन्थ 'रिइनकारनेशन: ए स्टडी ऑफ फारगोटन ट्र ुथ' का प्रकाशन इसमें सर्वप्रथम है, जो सन् १८८८ में पहली बार प्रकाशित हो चुका था । सन् १९११ तथा १६६५ में इसे पुनः प्रकाशित किया गया। इसके बाद पिछले शतक में बीसों ग्रन्थ तथा पचासों लेख इस विषय में प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ० स्टीवनसन द्वारा लिखित "दी एविडंस फार सरवाइवल फॉम क्लेइम्ड मेमोरिज ऑफ एट फॉर्मर इनकारनेशंस" सन् १९६० में जनरल ऑफ अमेरिकन सोसायटी ऑफ सायकिकल रिसर्च में प्रकाशित होकर सन् १९६१ में पुस्तक रूप में इंग्लैंड से प्रकाशित हुआ। इसके बाद सन् १९७६ में बीस घटनाओं के सम्पूर्ण एवं समीक्षात्मक अध्ययन पर आधारित उनका सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ "ट्वेण्टी कैसेज सजेस्टिव ऑफ रिइनकारनेशन" प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात् भी समय-समय पर इस विषय में उनके लेख एवं पुस्तकें प्रकाशित होती रही है। इस दिशा में निरन्तर कार्य हो रहा है । घटनाओं में भी काफी वृद्धि हुई है । सन् १९६९-७० में दो वर्षों के अन्दर ही भारत में १०८ एवं बर्मा में ६० घटनाएं प्रकाश में आई हैं। उदाहरण स्वरूप ब्राजील की एक घटना का उल्लेख किया जा रहा है।
ब्राजील में अढ़ाई वर्ष की बालिका को पूर्वजन्म की स्मृति
सन् १९१८, अगस्त की १४ तारीख को ब्राजील देश में डोम फेलिसियानो नामक एक छोटे गांव में रहने वाले एक परिवार में एक बालिका का जन्म हुआ। पिता एफ० ह्वी० लौरेंज तथा माता ईदा लौरेंज ने उसका नाम मार्टा रखा। मार्टा अढ़ाई वर्ष की हुई थी, तब एक दिन वह अपनी बहिन लीला के साथ घर से थोड़ी दूर आए हुए एक नाले पर रह गई थी। यहां से वापिस घर लौटते समय उसने लीला से कहा—मुझे गोद में उठाकर ले चलो। जब पहले तू छोटी थी और मैं बड़ी थी, मैं तुझे गोद में उठाकर घुमाती थी । छोटी बहिन के मुंह से इस प्रकार की बात सुनकर बड़ी बहिन को हंसी आ गई। उसने पूछा- तुम बड़ी कब थीं !
मार्टा ने कहा--उस समय मैं इस घर में नहीं रहती थी। मेरा घर यहां से काफी दूर था। वहां अनेक गाय, बैल आदि हमारे घर पाले हुए थे तथा नारंगी के पेड़ थे। वहां कुछ बकरे जैसे पशु भी पाले हुए थे । पर वे बकरे नहीं थे ।
इस प्रकार बातचीत करते हुए मार्टा और लीला जब घर पहुंची, लीला ने सारी बात अपने माता-पिता से कही । पिता ने मा
से कहा- जिस घर की तुम चर्चा कर रही हो, वहां हम कभी नहीं रहे ।
मा ने तुरन्त उत्तर दिया- उस समय आप हमारे माता-पिता नहीं थे, वे दूसरे थे ।
छोटी बच्ची की पागल की सी बातें सुनकर उसकी एक अन्य बहिन ने मजाक में ही मार्टा से पूछा तब फिर तुम्हारे घर एक छोटी हब्शी नौकरानी (लड़की) भी थी, जैसे अपने घर में अभी है ।
मार्टा इस मजाक से बिलकुल भी बैचेन नहीं हुई । उसने कहा -ना, हमारे घर में जो हब्शी नौकरानी थी, वह काफी बड़ी थी। एक रसोईयन भी हब्शी थी तथा वह दूसरा एक हब्शी लड़का भी काम करता था। एक बार वह लड़का बेचारा पानी लाना भूल गया था, तब मेरे पिता ने उसे बहुत पीटा था ।
१. डॉ० स्टीवनसन स्वयं अनेक बार भारत आये हैं तथा इन यात्राओं में उनसे व्यक्तिगत रूप से लंबी चर्चाएं भी हुई। उन्होंने अपने अध्ययन और गवेषणा के आधार पर जो साहित्य प्रकाशित किया है, उसे गहराई से अध्ययन करने का अवसर भी प्राप्त हुआ है।
आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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