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________________ किया है कि अनुमान प्रमाण भी प्रत्यक्ष प्रमाण की भांति शब्दब्रह्म का साधक नहीं है। विकल्प प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि अनुपलब्धि लिंग वाले अनुमान को विधिसाधक नहीं माना गया है। अत: शब्दाद्वैतवादियों को बताना चाहिए कि वे किस अनुमान को ब्रह्म का साधक मानते हैं कार्य लिंग वाले अनुमान को ? अथवा । स्वभाव आदि लिंग वाले अनुमान को ? कार्यलिंग वाले अनुमान को शब्दब्रह्म का साधक नहीं माना जा सकता, क्योंकि नित्य-एक-स्वभाव वाले शब्द ब्रह्म से कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। वह न तो कम से कार्य की निष्पत्ति (अर्थक्रिया) कर सकता है और न युगपत् (एक साथ)।' जब उसका कोई कार्य नहीं है, तो उसके साधक अनुमान का हेतु किसे बनाया जाय ? अर्थात् कार्य के अभाव में कार्यलिंग वाले अनुमान से शब्दब्रह्म की सिद्धि नहीं हो सकती। स्वभावलिंग वाला अनुमान भी शब्दब्रह्म का साधक नहीं है, क्योंकि धर्मी रूप शब्दब्रह्म के सिद्ध होने पर ही उसके स्वभाव (स्वरूप) भूत धर्म वाले अनुमान से उसका अस्तित्व सिद्ध करना तर्कसंगत होता है। लेकिन जब शब्दब्रह्म नामक धर्मी ही असिद्ध है, तो उसका स्वभावलिंग भी असिद्ध होगा । अतः स्वभालिग वाला अनुमान शब्दब्रह्म का साधक ही नहीं हो सकता। कार्य और स्वभाव लिंग को छोड़कर अन्य कोई ऐसा हेतु ही नहीं है, जो शब्दब्रह्म का साधक हो। प्रभाचन्द्राचार्य कहते हैं कि शब्दाद्वैतवादियों का यह अनुमान भी ठीक नहीं है कि जो जिस आकार से अनुस्यूत होते हैं, वे उसी स्वरूप (तन्मय) के ही होते हैं। जैसे घट, शराव, उदंचन आदि मिट्टी के आकार से अनुगत होने के कारण वे मिट्टी के स्वभाव वाले हैं और सब पदार्थ शब्दाकार से अनुस्यूत हैं, अतः शब्दमय हैं। इस कथन के ठीक न होने का कारण यह है कि पदार्थ का शब्दाकार से अन्वित होना असिद्ध है। शब्दाद्वैतवादियों का यह कथन तभी सत्य माना जाता, जब नील आदि पदार्थों को जानने की इच्छा करने वाला (प्रतिपत्ता) व्यक्ति प्रत्यक्ष प्रमाण से जानकर उन पदार्थों को शब्दसहित जानता । किन्तु ऐसा नहीं होता, इसके विपरीत वह उन पदार्थों को प्रत्यक्ष रूप से शब्दरहित ही जानता है। इसके अतिरिक्त एक बात यह भी है कि पदार्थों का स्वरूप शब्दों से अन्वित न होने पर भी शब्दाद्वैतवादियों ने अपनी कल्पना से मान लिया है कि पदार्थों में शब्दान्वितत्व है, इसलिए भी उनकी मान्यता असिद्ध है। तात्पर्य यह है कि 'शब्दान्वितत्व' रूप हेतु कल्पित होने से शब्दब्रह्म की सिद्धि के लिए दिये गये अनुमान प्रमाण से शब्दब्रह्म की सिद्धि नहीं होती।५। घटादि रूप दृष्टान्त साध्य और साधन से रहित है --शब्दब्रह्म की सिद्धि हेतु प्रयोज्य अनुमान भी घटादि रूप दृष्टान्त में साध्य और साधन के न होने से. निर्दोष नहीं है। क्योंकि, घटादि में सर्वथा एकमयत्व और एकान्वितत्व सिद्ध नहीं है। समान और असमान रूप से परिणत होने वाले सभी पदार्थ परमार्थतः एकरूपता से अन्वित नहीं हैं। इसलिए सिद्ध है कि अनुमान प्रमाण शब्दब्रह्म का साधक नहीं है। १. (क) 'नाप्यनुमानतस्तत्सिद्धिः यतोऽनुमान कालिगजम् स्वभावहेतुप्रभवं वा तत्सिद्धये व्याप्रियते ?', अभयदेवसूरि : सं० त० प्र० टी०, त ० वि०, गा० ६, पृ० ३८४ (ख): 'अनुमानं हि कार्यलिङ्ग वा भवेत, स्वभावादिलिग वा ?', प्रभाचन्द्र : प्रक० मा०, १/३, पृ० ४५ (ग) 'नाप्यनुमानतः । तथा हनुमान भवत्कार्यलिङ्गं भवेत् स्वभावलिङ्ग वा ?', कमलशील : त० सं० पञ्जिका टीका, कारिका १४७-१४८, पृ०६२-६३ २. (क) 'नाप्यनुमानतस्त सिद्धि"तत्सिद्धये व्याप्रियते ?', अभयदेवसूरि : सं० त० प्र०टी, तृ० वि०, गा० ६, पृ. ३८४ (ख) ""अनुमानं हि भवेत स्वभावादिलिङ्ग वा ?', प्रभाचन्द्र : प्र. क. मा०, १/३, पृ० ४५ (ग) 'नाप्यनुमानत:'"स्वभावलिङ गं वा?', कमलशील : त० सं० पंजिका टीका, कारिका १४७-४८, पृ० ६२-६३ ३. वही, तुलना करें: 'धमिसत्वाप्रसिद्धस्तु, स्वभाव: प्रसाधकः ।', त० सं०, कारिका १४८ ४. " "तदप्युक्तिमानम् शब्दाकारान्वितत्वस्यासिद्धः' (क) न्या० कु० च०, १/५, पृ० १४५ (ख) प्र.क० मा०, १/३, पृ० ४६ ५. 'कल्पितत्वाच्चास्याऽसिद्धि.।', वही तुलना के लिए द्रष्टव्य : त० सं० टीका, प०६१ ६. 'साध्यसाधनविकलाच दृष्टान्तो...', वही ७. (क) 'न खलु भावानां परमार्थेनं करूपानु गमोस्ति ।', वही (ख) स० त० प्र० टीका, पृ० ३८३ जैन दर्शन मीमांसा १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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