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________________ आचारों के अतिरिक्त सम्यग्दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार आदि पांच आचार' और बतलाये हैं। इनमें से आलोच्य अभिलेखों में ज्ञानाचार का उल्लेख हुआ है । तप और समाधि - सत्यग्ज्ञानरूपी नेत्र को धारण करने वाले साधु के द्वारा जो कर्मरूपी मैल को दूर करने के लिए तपा जाता है उसे तप कहते हैं ।' श्रवणबेलगोला के आलोच्य अभिलेखों में तप और उसके बारह प्रकारों (द्वादश तप) का उल्लेख हुआ है। जैनों ने 'अनेकार्य निघण्टु' में 'चेतश्च समाधानं समाधिरिति गद्यते' कहकर चित्त के समाधान को ही समाधि कहा है। उपर्युक्त अभिलेखों में समाधि और उसके भेदों (सविकल्पक और निविकल्प) का एकाधिक बार उल्लेख हुआ है। व्रत हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह से निवृत्त होना व्रत है। आशाधर के अनुसार किन्हीं पदार्थों के सेवन का अथवा हिंसादि अशुभ कर्मों का नियत या अनियत काल के लिए संकल्पपूर्वक त्याग करना व्रत है।" धवणबेलगोला के अभिलेखों में व्रत का कई स्थलों पर उल्लेख आया है।" एक अभिलेख में श्रावकों के अणुव्रत या एकदेशत तथा साधुओं के महाव्रत या सर्वदेश इन दो भेदों का उल्लेख मिलता हैं। 1 देवी-देवता - आत्मा के ज्ञानरूप का दिग्दर्शन कराने वाला कोई जैनाचार्य या राजा ऐसा नहीं हुआ, जिसने भगवान् के चरणों मैं स्तुति स्तोत्रों के पुष्प न विखेरे हों जैनों में देवी-देवताओं की पूजा-स्तुति होती रही है, ऐसा श्रवणबेलगोला के अभिलेखों के साक्ष्य से प्रमाणित होता है । आलोच्य अभिलेखों में अनेक जैन-अजैन देवी-देवताओं के उल्लेख मिलते हैं। इनकी सूची इस प्रकार है— धूर्जंट (शिव)", महेश्वर ", वन- देवता", त्रिभुवनतिलक, शासनदेवता ( चौबीस तीर्थंकर), परमेश्वर, सरस्वती६, पद्मावती" आदि । इस प्रकार हम देखते हैं कि श्रवणबेलगोला के आलोच्य अभिलेखों में धर्म, दर्शन तथा आचार आदि से सम्बद्ध सामग्री उपलब्ध होती है परन्तु वह इतनी विवरणात्मक तथा स्पष्ट नहीं है जिससे धर्म, दर्शन तथा आचार के विविध पक्षों को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया जा सके । १. प्रवचनसार, २०२ २. जं० शि० सं०, भाग १, ले० सं० ११३ ३. पद्मनन्दि कृत पंचविशतिका, १/४८ ४. ज० शि० सं०, भाग १, ले० सं० ५४ / ६६, १०८ /६०, १०५/१६ ५. वही, ११३ ६. धनञ्जयनाममाला सभाष्य, श्लोक १२४, पृ० १०५ ७. जं० शि० सं०, भाग १, ले० सं० १०८ / ४४ ८. वही, १०८/२४, १०८/२० ९. तवार्थसून, ७/१ १०२/ ११. ० शि० सं०, भाग १, ले० सं० ५४, १०५, १०८ १२. वही, १०८ /६० १३. वही, ५४ / ८, १०५ / ५४ १४. वही. ५४ / १८ १५. वही, ५४/४ १६. बही, १०५ / ४९ १७. वही, ५४/१० १८. वही, ५४/१७ १६. वही, ५४/१७, १०५/५५ २०. वही, ५४ / ६, ५४/१२ १०४ Jain Education International आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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