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आचार्यरत्न श्री देशभषण जी महाराज की जीवन गाथा
-डॉ० रियाज गाजियाबादी
नाम लं मालिक का पहले फिर उठाऊँ मैं कलम और करूं फिर जीवनी श्रीदेशभषण की रकम मुस्कुराती थी बहारें गीत गाती थी पवन बादलों की चाल में था एक अजब-सा बाँकपन हाथ बांधे था खड़ा सम्मान में नीला गगन उस घड़ी जैसे किसी हो देवता का आगमन आप जब पैदा हुए तो कलियाँ मुस्कामे लगीं और खुश होकर जहाँ में खुशबू फैलाने लगी
आपकी चाची ने सीने से लगाया आपको बाल जीवन में हर एक दुख से बचाया आपको ज्ञान को छुट्टी में घोला औ पिलाया आपको सद्गुणों के भाव से अवगत कराया आपको पालन और पोषण किया चाची ने यद्यपि आपका किन्तु इस शुभ काम में सहयोग नानी ने दिया
सब तरफ थी रोशनी और जश्न सा मनने लगा घर में श्री सत्यगौड़ जी के पुत्र एक पैदा हुआ दूज की थी वह तिथि और मूल का नक्षत्र था क्षत्री परिवार सारा रोशनी से भर गया कोथली है गांव प्यारा और जिला है बेलगाम ऊँचा है संसार भर में दक्षिणी भारत का नाम
'शान्ति सागर' जी ने भोजन आपके घर जब किया आपको देखा तो उनका हृदय गद्गद हो गया और आशीर्वाद पिच्छी सर पर रख कर यं दिया एक भावी साधु को बच्चे में मैंने पा लिया दीक्षा दी आपको जयकीर्ति महाराज ने आपके मन को लुभाया तख्त ने, न ताज ने
आपके माता पिता भी खश थे बेटा देखकर भर गया था नूर से सतगौड़ पाटिल का घर चाचा चाची भी हए दिल से निछावर आप पर हर्ष और उल्लास में डूबा हुआ था गाँव भर दीप जलता हो न जिस पर कोई ऐसा दर न था इससे सुन्दर और सुहाना कोई भी मंज़र न था
बालावस्था में ही मन को आपके चिन्ता लगी आपके मन में कभी इच्छा हुई न भोग की आपने दुनिया की हर वस्तु को इच्छा छोड़ दी मानवता का दान फिर देने लगे भूषण श्री कुछ दिनों तक ही पिता के प्यार की वर्षा हुई फिर पिता ने भी अचानक ही ये दुनिया छोड़ दी
हर्ष का वातावरण था सबके हृदय थे निहाल गीत गाते थे सभी पक्षी भी होकर एक ताल आपके दर्शन के मोह में चाँद ने बदली थी चाल सूर्य-सा था चमकता आपका मस्तक विशाल कुछ खुशी भी देखने पाई न थीं अक्कावती पुत्र को छोड़ा अचानक स्वर्ग ही की राह ली
यूं तो बचपन से ही स्वामी ज्ञान का भंडार थे अपने सब सहयोगियों से तेज थे तर्रार थे अपने गुरुओं की भी वह आशाओं का आधार थे नस्ले आदम के लिए वह जैसे एक सरदार थे देशभषण जी जवानी में बहत बलवान थे तीन मन के बोझ भी इनके लिए आसान थे
रसवन्तिका
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