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________________ धर्मस्य सेतुं गतभीतिशोकम्, लोकोत्तमं (६) दृष्टास्य काचिदपरैव हि वाक्यसूक्ति:, धर्मोपदेशमधुरा हितसाधयित्री । आनन्दयत्यथ च कर्णपथं प्रयाता, चेतः सताममृतवृष्टिरिव प्रविष्टा ॥ ( ७० ) कल्याणमारोग्यमभीष्टसिद्धिम्, समृद्धि लब्धिञ्च महोन्नति कीर्तितति प्रसिद्धाम्, तदीयसंघः श्रयते ३८ हर्षित साधु लोकम् ॥ ६. ७. ८. ε. (७१) विद्यावद्भिः सुभगतनुभिश्चारुचारित्रवर्यैः, श्रीगुर्वाज्ञाविनयनिपुणैः सेवितं साधुवर्यैः । श्रद्धालूनां पृथुपरिषदि प्रौढधाम्नां निषण्णाम्, त्रयस्त्रिंशैरिव परिगतं संसदीन्द्रं सुराणाम् ॥ ( ७२ ) धात्रीभृत्सु महान् सुमेरुरचलः, शस्त्रेष वज्रं यथा, तार्क्ष्यः पक्षिषु गोषु कामसुरभी रत्नेषु चिन्तामणिः । कल्पद्रुद्रुषु नन्दनं वनगणेष्वैरावतो हस्तिषु, पूज्यश्रीयुतदेशभूषण मुनिर्लोकेऽत्र १०. ११. गुणप्रसिद्धिम् Jain Education International 1 विद्योतते ॥ १. पूज्य श्री देशभूषण जी की जन्मभूमि- 'कोथली' । २. पूज्य आचार्य श्री की माता । ३. पूज्य आचार्य श्री के पिता । ४. पूज्य आचार्य श्री का जन्म (सांसारिक) नाम । ५. सदैव ॥ (७३) यावज्जगत्यां रविचन्द्रताराः, यावच्च आचार्यवर्याः विमलां जगत्याम्, तावत्कीर्ति (७४) धन्योऽस्त्ययं भारतवर्षदेशः, गङ्गादिनदीप्रवाहः । श्रीबालगौडादिसमा स्वजीवनं धन्योऽस्ति सर्वो जिनवसंघः । प्राप्तान्तरात्मत्व पद समवाप्नुवन्तु ॥ यदीयाः, सार्थकतां (७५) वरेण्यम्, सिद्धान्तवारांनिधिमृद्धशुद्धिम्, वृत्ति दधानं प्रशमप्रधानाम् । For Private Personal Use Only नयन्ति ॥ वन्दे मुनीन्द्रं विबुधार्चिताङ्घ्रिम् ॥ (७६) चारित्रेण समुज्ज्वलेन यतिषु प्राप्तादरं सर्वदा, सद्धर्माचरणोपदेशकुशलं सच्छास्त्रपारङ्गतम् । मिथ्याज्ञानघनान्धकारमलिने पृथ्वीतले भास्करम्, आचार्यं मुनिदेशभूषण महं वन्दे जगद्-वन्दितम् ॥ हैदराबाद स्टेट में आचार्य श्री के पदार्पण से पूर्व किसी नग्न मुनि का प्रवेश कानूनी तौर पर निषिद्ध था। आपने अनेक उपसर्गों को जीतकर, सत्याग्रह आदि के द्वारा मुस्लिम सम्प्रदाय का भी दिल जीता। सर्वतोभद्र, वसन्तभद्र, रत्नावली -ये कठिन घोर तप 'उपवास' के व्रत हैं । अस्मै + अतीव आचार्य पायसागर जी महाराज । जयपुर (खानियां) की मनोरम नशियां की पृष्ठभागवर्ती पहाड़ी पर २४ की टोंक बनाकर उनके चरण स्थापित किये तथा बीच में जिनालय में पार्श्व भगवान् की उत्तुंग सातफुटी प्रतिमा स्थापित की गई। कोल्हापुर (महाराष्ट्र ) । भूवलय शास्त्र एक प्रकार से अद्भुत ग्रन्थ है । अंकों द्वारा सांकेतिक भाषा में यह निबद्ध है। कई भाषाओं में इसे पढ़ा जा सकता है । वायुयान निर्माण आदि की विधियां इसमें छिपी हैं । आचार्य श्री ने इसे पढ़ कर एक खण्ड प्रकाशित कराया । आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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