________________
सचल तीर्थ
हे युग कल्याणी
-डॉ. रमेशचन्द्र गुप्त
हे सचल तीर्थ आचार्य-प्रवर, युगश्रेष्ठ, तपी !
तुमने जिस धर्ममयी वाणी को ग्रन्थों में आबद्ध किया उसको मानव युग-युग तक पढ़ता जाएगा। वह मनन करेगा, और, अचानक चेतन ही बन जाएगा !
हे करुणा के प्रतिरूप, उदारता-मेरु ! कल्पना के पांखी, तुम युगद्रष्टा ! तुमने पर्वत शिखरों पर सातिशय जिन-प्रतिमा स्थापित कर दी। वह नहीं मात्र है शिल्प-कला, भगवान् स्वयं उतरे भू पर ! तुमने उनको अवतरित किया, जन-मन में सुख पहुंचाने को !!
-कु० रुचिरा गुप्ता हे युग कल्याणी सरस्वती पुत्र परम तपस्वी ज्ञान के भण्डार आचार्य देशभषण जी महाराज तुमको बारम्बार प्रणाम ! ज्ञाता हो तुम ज्ञान के वाणी में अमृत-सी मिठास सूर्य की भांति मानव को दिया तुमने ज्योति का प्रकाश ! भाषा की दीवार तोड़ मिलाया मानव को मानव से हुआ जो लिप्त भौतिकता में दिखाई राह उसे ज्ञान से तुम हो महान् हे प्राणवान् !
सार्थवाह
-डॉ० वीणा गुप्ता साहित्य साक्षी है और इतिहास गवाह कि भारत-भूमि पर अवतरित सार्थवाह अपने दिव्य संदेशों, उपदेशामृतों आचरणों, व्यवहारों और कर्मवृत्तों सेकर देते हैं मानव का कल्याण, दिखा देते हैं उसे एक मंजिल बना देते हैं उसे इंसान ! इंसान! . यानि कि उसके वासनाजन्य विकारों को मिटा देते हैं वे अपने उपदेशों से कर देते हैं उसे पावन ! वर्तमान युग में, ऐसे ही सार्थवाह हैंआचार्य श्री देशभूषण ! "
तुम समदर्शी तुम युगचेता, हे सत्त्व रूप! संचरणशील दिक को तमने अम्बर माना ! हे सचल तीर्थ प्राचार्य-प्रवर, युगश्रेष्ठ, तपी !!
रसवन्तिका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org