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शत शत वन्दन
- श्री दामोदर चन्द्र
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विद्यासागर सब वृष ज्ञाता, नीतिज सुतपि कल्याण थान। कर्मठ आदर्शगुणी सुसन्त, आध्यात्मिक निधि के हे निमान ॥ हे प्राणवान गौरव विशाल, आचार्य देशभूषण सुनाम । ऐसे महात्मा के पद में शत-शत वन्दन शत-शत प्रणाम ।।
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हे धर्ममूर्ति राजवि व्रती विद्याप्रेमी, प्रकाण्ड पण्डित । सतशोधक तत्त्वसमीक्षक हे उत्कृष्ट त्यागि शांत मण्डित ॥ मानवता के आदर्शरूप, जीवन की निधियों से ललाम । शुभ वक्ता हित उपदेशी को शत-शत वन्दन शत-शत प्रणाम || युग 'के गौरव हे सत् साधक, मृदु भाषी, हे संसार- विरत । सन्यासि निरीह समाज प्राण हो जनहितु तुम वात्सल्यनिरत ॥ तुम योगी सद्मुख भोगी हो हो शुभ आचार्य प्रशस्त नाम । आत्मानुरक्त तुमको मेरा शत शत वन्दन शत-शत प्रणाम ।। आध्यात्मिक सन्त सुज्ञान सूर्य बहु संस्थाओं के निर्माता । निश्छलता के प्रतिरूप अरे, सर्वोदय के तुम तो ज्ञाता ॥ हे विद्वानों के हितचिन्तक, स्तम्भ अहिंसा, न्याय धाम । विद्वषहारि तुम पूज्यपाद, शत-शत वन्दन शत-शत प्रणाम ॥ आगम-वारिधि मथकर तुमने पाया आत्मिक अमृत महान् । बन गये अमर, जग को तुमने बांटा अमरत्व अरे प्रकाम ॥ निर्माणी, ज्ञानगुरु, गुण का है नहि अन्त, कहां क्या किया काम जाज्वल्यमान जन के नेता, शत शत वंदन शत-शत प्रणाम ।
दिव्यावतार अध्यात्म पुरुष, हो चित उदार निरपेक्ष धीर। समदर्शी सम्यग्ज्ञानी हे, शिवपथ-साधक तुम हो गंभीर ॥ मानव - चरित्र की पुण्य मूर्ति, तुम महामना सत्पथिक नाम । जन उद्धारक तुम निर्ग्रन्थी, शत शत वन्दन शत-शत प्रणाम ||
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तुम ज्ञानवृद्ध अनुभवसमृद्ध हो वयोवृद्ध शुभ देशभक्त । तुम सिद्धहस्त हो त्याग मूर्ति, शुभ ज्ञान कल्पतरु तीर्थ भक्त ।। प्रातःस्मरणीय महान् सन्त, जन वंद्य सन्त चारित्र धाम । हो जैन जगत् हीरा अमूल्य, शत-शत वन्दन शत-शत प्रणाम ||
आचार्यरन भी देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन
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