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उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है
-- मदन शर्मा 'सुधाकर'
जोषों से रहित विषयोपभोग अजान हैं, सकलविद्या-गुण-विभूषित, मथितमन्मथमान है । "सत्य हो जो देश-भूषण 'देशभूषण' नाम हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ॥
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अनुत्तम तप त्याग संयम -शोभमान महान् हैं, धर्मनेता, विविधविरुदावलिकलित, विद्वान हैं । अमृत-निर्भर वचन जिनके मुक्ति के सोपान हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ॥
धर्मचर्चा, ग्रन्थलेखन, सदुपदेश - विशेष से, प्रतिक्षण जो भव्यजन के उददिधीर्षाकाम हैं । जिनालय स्थापन समुत्साही, सरल निर्मल हृदय, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है || एक भोजन, दो उपकरण, तीन रत्न-निधान हैं, चार आचरणीय, पंच महाव्रतों के प्राण हैं । मनःषष्ठेन्द्रियजयी, जित सप्त-व्यसन मुकाम है, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ॥
रागपरिणतिरहित जिनको तुल्य सौध-मसान हैं, गिरिगुहा, पर्वतशिखर, नगरी, अरण्य समान हैं । प्रिय नहीं, अप्रिय नहीं जो उदासोन अकाम हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ॥
मार के दुर्वार दावप्रशम में हिमवान हैं, गहन अज्ञानान्धकार-निकारपटु भास्वान हैं । जो विमलचारित्र ज्ञान सम्यक् शुद्ध बुद्ध - प्रकाम हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ॥ आत्मबोधविदग्ध जिनको स्व-पर की पहचान है, तपस्वी, सुहृदय, मनस्वी, क्षमाशील, महान हैं ॥ जो जिनप्रभुचरण-रतिधर अडिग गिरिचट्टान हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ॥
जो प्रसन्नात्मा, सदाशय, सद्गुणों की खान हैं, शुद्ध सामायिकपरायण, पुण्यमथ - अवदान हैं । जो चतुर्विध संघ के रक्षार्थं कृत- अवधान हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ।। जो पदाति विहार करके अनघ करते मेदिनी, क्षमा आर्जव शौच उत्तम वित्त के निर्भर धनी ॥ सम्पदाओं के निकेतन किन्तु अपपरिधान हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है || जो कठिन मिथ्यात्वतरु-तक्षण कठोर कुठार हैं, जो त्रिविध सम्यक्रत्न के सुपुनीत मणि आगार हैं | परम निःश्रेयस सुपथ के जो उदित्वर भानु हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है । मदनविजयो जो विचरते खड्ग को शित धार पर, चुलुक करते कालकूट समुद्र संयम धार कर । जिन्हें ज्वालापर्वतों के स्रोत हो पयपान हैं, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है |
भूमिशेय्या, केशलुचन, पदविहार, दिगम्बरी, सर्वदा अनगार, दुष्कर एकभोजन गोचरी । वीतराग जिनेन्द्र मुद्रांकित जिन्हों का चाम है, उन पवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ॥ जो त्रिविध सम्यक् रत्न के अनुपम स्वयं आदर्श हैं, अहिंसावृष के ककुद उन्नति-कलित उत्कर्ष हैं । जैन संस्कृति-अ। म्रवन के पिक मधुर मृदुगान हैं, उन एवित्र पदाम्बुरुह में विनय सहित प्रणाम है ॥ D
रसवन्तिका
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