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________________ आस्था के प्रतीक -समतप्रसाद जैन आचार्य श्री आपके पावन संस्पर्श से मेरी दिगम्बरत्व की समाराधना को एक नया अर्थ मिल गया है। आपने एक निर्भीक सिंह की तरह आत्मवैभव से मंडित होकर दासता के युग में धर्मदेशना द्वारा ग्राम - ग्राम, नगर - नगर, स्वातंत्र्य का ज्योतिर्मय अलख जगाया था। जयकार तो बोलो । -'सुधेश जैन दिव्य यमुना-धार ! कल कल कण्ठ से जयकार तो बोलो! और स्वर में स्वर मिला जय ऐ कुतुबमीनार ! तो बोलो! ग्रीष्म से कब भीत होते, शीत से कब कांपते हैं ये ! 'देशभूषण' देश-भू को निज पदों से नापते हैं ये !! ये किसी भी तो उपासक से न कोई कामना करते ! हर परीषह और हर उपसर्ग का नित सामना करते !! इन विचक्षण वीतरागी पर स्वयं बलिहार तो हो लो। एक-सी इनके लिये ललकार औ' जयकार दोनों हैं ! एक-सी इनके लिये दुत्कार औ' सत्कार दोनों हैं !! एक-से इनके लिये प्रतिकल औ' अनकल दोनों हैं ! एक-से इनके लिये तो शल एवं फल दोनों हैं !! साधु ये समदृष्टि, इनके प्रति विन्य-उद्गार तो बोलो ! देह से होकर विरत इनने निजात्मा को निखारा है ! औ' नहीं तन-रूप, चेतन-रूप ही अविरत सिंगारा है !! मुक्ति पाने हेतु सारे बन्धनों को खोलते हैं ये ! अष्ट कर्मों की गढ़ी पर नित्य धावा बोलते हैं ये !! अब इन्हीं के अनुसरण के हेतु तुम तैयार तो हो लो! दिगम्बरत्व की महावेदी पर स्वयं को आचरण बना कर ब्रिटिश-शासित राज्यों और, किलेबन्दी किये हुए रजवाड़ोंफौलादी रियासतों में, मंगल - विहार कर अनेक उपसर्गों को सहते हुए धर्मान्ध राजाज्ञाओं को ध्वस्त कर आपने धर्ममय साधना एवं गौरवमंडित व्यवहार से दिगम्बरत्व का नया इतिहास ही लिख दिया था। मेरे प्रभ ! आपनेदिगम्बरत्व का नया इतिहास ही लिख दिया था। इसीलिए आप मेरी अन्यतम आस्था के प्रतीक हो ! सच तो यह हैआप ही इस युग में दिगम्बरत्व के दैदीप्यमान प्रतीक हो !! VOODOO . . . . . . ....... Tula IMALA . . . . . . . . . . . . . . आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रन्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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