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संस्कृति के महासूर्य
-प्रभात जैन
मेरा नमन करो स्वीकार
-शरदचन्द्र शास्त्री 'शरद
कर्मों की कारा सेमुक्त हो गये हैं जो, मोह, मद, माया के आडम्बर त्याग दिये हैं, अहर्निश जागृत जो, अन्तर्ध्वनि दीक्षित हैं, चिन्तन में, तत्त्व के विवेचन में, त्याग और संयम के महामंत्र
और जो समर्पित हैंकर्मों के रेचन में !
चरणों में आचार्य श्री के, शीश नवाऊँ शत-शत बार। जीवन धन हो जैन धर्म के, स्याद्वाद के तत्त्व निधान । श्रद्धा भक्ति विनय से गुरुवर, मेरा नमन करो स्वीकार । देश धर्म के तुम आभूषण,
मौलिकता के शुचि आधार॥
ज्योतिपुञ्ज, युगद्रष्टा, आत्मपुरुष संस्कृति के महासूर्य, आलोकित, आत्मलीन, मंगलमय और पुनीत! निम्रन्थ, तपोनिष्ठ की काया, आभासित दर्शन मेंउस विराट् की छाया।
स्याद्वाद की तर्क नीति के, एकमात्र प्रिय तथ्य विचार । चारित्र के तुम पूर्ण धनी हो, मिथ्या मत को प्रबल कुठार। विश्व धर्म की पावन प्रतिमा, नाम आपका विदित जहान । मोक्ष मार्ग के मार्ग-प्रदर्शक, मेरा नमन करो स्वीकार
स्थितप्रज्ञ, निर्विकार, योग, ज्ञान, भाष्यकार, नमन मेरा
भावना का, कामना का,
प्रार्थना का, 'चिर कृतज्ञश्रमण संस्कृति समाज, सद्, चिद्, आनंदचिदानंद, भाचार्य श्री देशभूषण महाराज !
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रसवन्तिका
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