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इस मुनिवर को नमन करो
- मेसी निशान्त
इस मुनिवर को नमन करो, यह ज्ञाता सारे ज्ञान का है ! यह सूरज तेरा ना मेरा, यह सारे हिन्दुस्तान का है ! !
- दक्षिण से ज्योति किरण निकली, कल रातों के दामन में । फैल गई वो पूरब पश्चिम,
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उत्तर तक आंगन में । शीश झुका कर नमन करो, यह श्रेष्ठ रूप इंसान का है !
माया मोह तजा मुनिवर, ने, अष्ट मदों का नाश किया।
इन्द्रिय दमन कर कोटि जनों के,
मानस - मन में वास किया । नमन करो इस जीवन को जो, त्याग और बलिदान का है !
- दश विधि धर्मं किया पालन,
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तुम मुनि दिगंबर संत महान् । ज्ञान के इस गहरे सागर में,
आओ कर लें हम सब स्नान । यह दिव्य मुख शोभायमान तन, निश्चय ही गुणवान् का है !
वो भी दो भूषण मुनि जिनके,
उपसर्ग निवारण 'राम' करें । यह वह 'भूषण' हैं जिनसे अब, असुरों के भी उपसर्ग डरें । अति सुन्दर यह सुमन धर्म के, गौरवशाली उद्यान का है !
भावों में चन्दन सुगन्ध, वाणी में हैं वरदान भरे । क्यों न ऐसे तपोधनी को, सारा जग प्रणाम करे । इनका तन जैसे हो मन्दिर, मन पावन घर भगवान् का है !
गुरु - गौरव आध्यात्मिक-भूषण
- वसन्तकुमार जैन शास्त्री
वैराग्य विभूषित हे गुरुवर, निज ज्ञान ध्यान तप में सुलीन ।
श्रागम चक्षु तत्त्व प्रकाशक,
परम दिगम्बर शान्त प्रवीन ॥
तुम कुल भूषण, तुम गुण-भूषण,
तुम जिन-जग के हो युग भूषण ।
तुम सन्त प्रवर, देश भूषण,
गुरु- गौरव आध्यात्मिक भूषण ॥
सुसुप्त मनुज तब जाग उठा,
जब प्रकट आपकी ज्ञान-गिरा । निज की निधि को वह समझ सका,
जैसे भवसागर तिरा, तिरा !! निज-पर के उपकारी गुरुवर,
उपकार किया जग-प्राणों पर ।
दे सम्बल जिनवाणी उनको,
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ये निश्चय से जायेंगे तर !!
युग-युग जीश्रो, युग-युग जीओ,
युग-युग हो अमर जैन-वाणी ।
है कोटि नमन, वन्दन गुरुवर,
आचार्य देशभूषण ज्ञानी !! आचार्य रत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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