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अपित चरण श्रद्धा-सुमन
--मिश्रीलाल जैन अर्पित चरण, श्रद्धा सुमन । शत-शत नमन, शत-शत नमन ।। हर गाँव अमृत वांटता। पथ-धूलि देह निखारता ।। आमंत्रण दे हर द्वार को। चलने जगत के पार को ।। निर्वाण के पथ पर चलो। जग पोंछ लो अपने नयन !! अर्पित चरणबद्धा-सुमन ! शत-शत नमन, शत-शत नमन !!
शीतल शिशिर की रात में । आत्मा के बाहुपाश में। भूमि पर करता शयन । हैं देखते ऊपर नयन ।। ज्योति - पारावार भी, करता तुम्हें शत-शत नमन !! अपित चरण श्रद्धा-सुमन ! शत-शत नमन, शत-शत नमन !!
प्रखर सर्य
-जवाहरलाल 'भारत' हे आचार्य देशभूषण जी, श्रद्धा से नत हूँ तुम्हारे विराटे व्यक्तित्व के सामने । प्रखर सूर्य-साज्ञानोपदेश बन गया पथ-प्रदर्शक अन्धकार में भटकते असंख्य-असंख्य प्राणियों के लिए!
मुख मंडल पर चन्द्रमा-सी आभा, शीतलता, सौम्यता ! वाणी में सरस्वती का दुलार !! सागर को गागर में भरकर बनाया 'अमत कूड' ! यानी कि विविध भाषाओं के धर्म-ग्रन्थों को कर दिया अनुदित हिन्दी में। बना दिया धर्म-ज्ञान जन-जन के लिए सुलभ !!
जिस अंश में भी शुद्ध हो। उतने ही आप प्रबद्ध हो।। बाहर लड़ाई व्यर्थ है। भीतर निरन्तर युद्ध हो !! सिन्धु के तट बैठकर । मापा न जाता गहरापन !! अपित चरण श्रद्धा-सुमन ! शत-शत नमन, शत-शत नमन !!
हे स्नेहिल ! द्रौपदी-चीर की भांति धर्म-चक्र का निरन्तर प्रवर्तन कर उत्थान किया तुमने अस्वस्थ मानसिकता का कल्याण किया तुमने मानव मात्र का!
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रसवन्तिका
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