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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी
-डॉ. प्रकाश सिंघई
आचार-विचार को धारण करके, स्व-पर का भेद भलाकर । चार गुणों का पालन करके, कथनी करनी में समता कर। (प)र्यवरण जिन-धारण करके, जिनत्व सफलता से पाकर । रत्न प्रभा से शोभित होकर, पंच महाव्रत पालन करते। तुम अज्ञान को दूर भगाकर, जनमन में ज्ञानोदय करते। नग्न दिगम्बर बन करके, समता ममता का पाठ पढ़ाते। श्री मख से जिन वाणी का, सूक्ष्म विवेचन करते हैं। देशकाल को ध्यान में रखकर, 'गढ़' सरल कर कहते हैं। शङ्काओं का कर समाधान, यह उपदेश वे करते हैं। भूतकाल के किये कर्म से, वर्तमान है खड़ा हुआ। षट्कर्मों से दूर रहो। तो, नव जीवन सुखमय होगा। णमोकार का जाप करो तों, भव-दुख दूर तभी होगा । जीवानाम परस्परोपग्रहो का सिद्धांत मूर्तवत् तब होगा।
हे प्राचार्य आपकी जय हो
-राजमल पवैया
हे आचार्य आपकी जय हो। वस्त स्विभाव धर्म के ज्ञाता, निज में ही रहते निर्भय हो। तम छत्तीस गणों से मंडित, धर्म प्रभावी सदा विजय हो। छह अभ्यंतर छह बाह्यतर, द्वादस तप तम करत निरंतर । उत्तम क्षमा आदि दस धर्मों के धारी मुनिवर अक्षय हो। दर्शन ज्ञान चरित्र बीयं तप, पंचाचार पालते निज जप । मन वच काय त्रिगुप्ति पालते, निज स्वरूप में ही प्रभु लय हो। षट आवश्यक समता चंदन, करते जिन स्तुति जिन वंदन । स्वाध्याय प्रतिक्रमण सदा ही, करते कार्योत्सर्ग अभय हो। भव्यजनों को दीक्षित करते, साध संघ संचालन करते। स्थितिकरण सुवात्सल्यमय, हे गुरुवर तुम मंगलमय हो। मेरे मिथ्यातम को टारो, मेरा अघ संताप निवारो। सम्यक ज्योति प्रकाशित कर दो, मेरा जीवन ज्योतिर्मय हो।
हे आचार्य आपकी जय हो।
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन पंच
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