________________
www.fawr
Jain Education International
अभिनन्दन होते रहें
श्री सुव्रत मुनि शास्त्री
वृद्धों में जो वृद्ध हैं, युवकों में जो युवक हैं,
बालों में बाल ।
सब को करें निहाल ॥
आयु बीस ही वर्ष में, संयम कर स्वीकार । अकिञ्चन आप हो गए, लिया धर्म आधार ॥
अलौकिक स्व साधन से, किए नव चमत्कार | जिससे सर्वत्र गूंजा, जग में जयजयकार ॥
जैसे छिप रहती सदा पानी में वैसे आप सदा रहें, स्वाध्याय में
स्व पर दर्शन बोध किया, मन, वच एक विधाय । संघ ने योग्य जानकर, सूरी दिया बनाय ॥
कीर्ति फैली आपकी, महक उठा दिगम्बर जैन संघ के, आप वने
पूज्य ग्राचार्यरन श्री देशभूषण महान । बहु भाषाविज्ञ निपुण अति, आप बड़े विद्वान ||
नेतृत्व तव बना रहे, भू पर वर्ष हजार । दिन हों इक इक वर्ष के पूरे एक हजार ॥
सुव्रत मुनि सुन खुश हुआ, अभिनन्दन की बात । अभिनन्दन होते रहें, ऐसे दिवा व रात ॥
शत-शत अभिनन्दन
-डॉ० सुरेश गौतम
युग-निर्माता, हे महान् संत ओ मानवता के कर्णधार, आत्मविश्वास के मूर्तिमंत भारत भूमि है धन्य-धन्य है मानसरोवर पगी देह, भवमंचन हुआ पूर्ण, तुम हे युगखष्टा भविष्यद्रष्टा हम फिरे-भटकते वन-वन में
1
1
ही मीन । विलीन |
चुन-चुन कर लाए हम कोमल स्वीकार करो हे आराधन
"
संसार । श्रृंगार ॥
तपतो जगती का नम्र नमन । करते तेरा शत-शत बन्दन ॥ आदर्शो के तेरे जैसा
जीवित स्तूप ।
यहां
तपःपूत ॥
आत्मा तेरी है पारिजात से हे तत्वज्ञान के
मूर्तिपुज ।
लोजे कितने हो विभिन्न कुज ॥
For Private & Personal Use Only
कल्प वृक्ष । अनासक्त ॥
"
खिलते कितने श्रद्धा-सुमन । है धन्य धन्य निस्पृह जीवन !!
१७
www.jainelibrary.org