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________________ यह बालब्रह्मचारी साधु, ज्ञानामत नित्य पिलाते हैं। लघु भोजन दिन में एक बार बस खड़े-खड़े हो पाते हैं ।। अमृत के झरने झरते हैं इनको सारस्वत वाणी में। उपदेशों से सद्ज्ञान भरा करते जग के हर प्राणी में । जंगल में मंगल हो जाता जिस जगह चरण पड़ जाते हैं। लगता है चौथा काल आप जिस तीरथ पर रुक जाते हैं । लिख करके शास्त्र पुराण कई मां सरस्वती भंडार भरा। इस आकुल-व्याकुल प्राणी में उपदेशों से उत्साह भरा।। ये पंडित बहु भाषाओं के, अनुवाद अनेकों कर डाले। तामिल, कन्नड़, संस्कृत, बंगला कुछ गुजराती में लिख डाले। उपसर्ग अनेकों कई बार आये पर यों ही चले गये। पर ये उपसर्ग-विजेता तब निज आत्मध्यान में लगे रहे। निर्माण कार्य तो कई जगह भारत भर में करवाये हैं। गाते हैं गौरव-गान तीर्थ ऐसे इतिहास बनाये हैं। तीर्थों के मुकुट अयोध्या में सुन्दर मंदिर बनवाया है। बत्तिस फिट ऊंची आदिनाथ की प्रतिमा को पधराया है। कोल्हापूर का मठ, चलगिरि में पार्श्वनाथ की छवि प्यारी । कोथली सरीखे नये-नये क्षेत्रों की रचना कर डाली ।। कालेज और पाठशाला तो जाने कितनी खुलवाई हैं। औषधालय और धर्मशाला दीनों के हित बनवाई हैं। वाचनालय और पुस्तकालय गाते इनकी गौरव गाथा। यह चमत्कार लख कर इनका झुक जाता जन-जन का माथा ॥ व्रत, ज्ञान, ध्यान, तप, संयम तो हरदम इनका पहरा देते। जो भी इनके दर्शन करता ये सबके पातक हर लेते ॥ ऐसे आचार्य देशभूषण जी के चरणों का वन्दन है। 'काका' कवि द्वारा मांग यही, करके वंदन अभिनन्दन है ।। हे प्रभु, धन्य हो जाऊँ मैं, मेरा शुभ दिन कब आयेगा। जब तव पद चिह्नों पर चल कर यह दीन मोक्षफल पायेगा। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन पाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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