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________________ सन्तिका Jain Education International वन्दन करता हूं बार-बार -- हजारीलाल 'काका' बुन्देलखंडी उपसर्गजयी श्री बाहुबली स्वामी को करके नमस्कार । आचार्य देशभूषण जो का वन्दन करता हूं बार-बार ॥ इनके ही एलाचार्य शिष्य श्री विद्यानंद का वन्दन है। जो विश्व धर्म के नारों से हर रहे जगत का क्रन्दन हैं । बीसवों सदो का समय बन्धु वैज्ञानिक युग कहलाता है। अब तरह-तरह के यंत्रों से मानव सुख-सुविधा पाता है ॥ बढ़ रहा दिनों-दिन भोग पक्ष, संयम का हाल बेहाल हुआ । छीना-झपटी संघर्षो का इस युग में नया कमाल हुआ ॥ कर्नाटक जनपद बेलगांव में ग्राम कोयली आता है। इसमें स्वर्गों का एक देव चय कर मानव गति पाता है ॥ ज्यों होनहार बिरवानों के हर पात चीकने होते हैं। बस उसी तरह मानव महान् के काम अनोखे होते हैं । यह बालक भी बचपन से ही अनहोने करतब दिखलाता । जिनदर्शन देवभजन पूजन भक्ती में सभी समय जाता ॥ हो जाते घंटों ध्यान मग्न, जग नश्वर है सोचा करते । वैराग्य भावनायें आकर संयम की ओर चरण धरते ॥ जब जैन-धर्म रूपी खराद पर यह हीरा चढ़ जाता है । जग की माया ममता तज कर आचार्य रत्न बन जाता है ॥ आचार्य देशभूषण सचमुच इस युग के सच्चे भूषण हैं। हैं जैन धर्म के मुकुट और भारत मां के आभूषण हैं | आचार्य शांतिसागर जो के इस युग के यही पट्टधर हैं । जो उनके सउपदेशों को अब भेजा करते घर-घर हैं ॥ सौभाग्य आज हम सब का है जो ऐसे गुरुवर पाये हैं। आपाधापी के इस युग में सन्मार्ग दिखाने आये हैं । यह परम विभूति आज जग को मानवता सिखलाने आई । जो पाप-पंक में डूबे थे अब उन्हें बचाने को आई ।। जग का कोई भी आकर्षण इनको विचलित कर सका नहीं। लक्ष्मी, गृहलक्ष्मी का बन्धन इन पर प्रभाव कर सका नहीं ॥ For Private & Personal Use Only १३ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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