________________
अभिनन्दन
-आयिका अभयमती जी
आचार्य देशभूषण गुरुवर तुमको है मेरा अभिनन्दन । गुण गाऊँ नित प्रति चरणों में, शत-शत वंदन शत-शत वंदन । शुभ पिता नाम है सत्यगौड़ माता देवी अक्काताई। तुम ग्राम कोथली में जन्मे, सब हर्षित हों पुरजन भाई। है प्रान्त सुकर्नाटक महान, हो धन्य-धन्य जनमन-रंजन । शुभ बचपन नाम सुबालगौड़, तुम पूर्णचन्द्र सम सुखकारी। हो बाल ब्रह्मचारी महान, तुम कुशल कलायुत मनहारी। यौवन में तुमने जीत लिया, कर कामदेव का मदमर्दन ।
जब मात-पिता ने ब्याह रचा, तुमने सचमुच इंकार किया। ली भरी जवानी में दीक्षा, आतम से नाता जोड़ लिया। असिधारा व्रत का पालन कर, ले ब्रह्मचर्य व्रत आजीवन । आचार्य श्री जयकोत्ति हए दीक्षा गुरु तुमरे हे महान् । गुरुवर के चरणों में रहकर, शिक्षा लेकर, हो बुद्धिमान । शिवमार्ग प्रदर्शक गुरु हित दर्शक, भव भयहारी दुख भंजन । चारित्र रूप रथ पर चढ़कर, जिनधर्म का डंका बजा दिया। जिन-सत्य, अहिंसा, अनेकांत, वाणी द्वारा प्रचार किया। दो "अभयमती" को आशिष, हे गुरु शत वंदन, शत-शत वंदन ।
कोटि-कोटि प्रणाम
-विमलकुमार जैन सोरया जो अहंत दिगम्बर मुद्रा का लेकर उपहार । जिसने अपनी ज्ञान ज्योति से किया जगत-उपकार। सम्यकता का अलंकरण जिसके अन्तस् में छाया । और साधना से साधकता का पद जिसने पाया। क्षमा हृदय मार्दव मन जिसका सत्य स्वयं के साथ । आर्जव अन्तस् बना शौच का बाना जिसके पास । संयम की सुगन्ध है जिसमें ता का तेज प्रकाश । और त्याग की ऊँचाई पर है जिसका विश्वास । आत्म-साधना में रत जिसका ब्रह्मचर्य भगवान् । ऐसे सन्त शिरोमणि के चरणों में कोटि प्रणाम ।
रसवन्तिका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org