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________________ है तपोरत्न। भारत-भषण! अर्पित जग का शत अभिनन्दन!! -नेमिचन्द्र जैन विनम्र है विद्यमान वर्णी जो की, परिणाम सरलता-निधि अनप ।। है यही भावना हम सबकी, हो प्राप्त तुम्हें शतयुग जीवन ! हे तपोरत्न, भारत-भूषण, अपित जग का शत अभिनन्दन !! उस ग्राम कोथली माटी को. हम करते शत-शत नमस्कार । उसने ही लाल दिया अनुपम, जिससे ज्योतित हैं दिशा द्वार ।। उन मात-पिता के चरणों में, हम अपना माथा टेक रहे। जिनकी आंखों के तारे ने, परिषह आतम-हित हेतु सहे ।। उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम, करती अगणित जनता वन्दन । है तपोरत्न, भारत-भूषण, अपित जग का शत अभिनन्दन!! यह पुण्य प्रताप तुम्हारा ही, जिससे जिनधर्मी-ज्योति जली। घर-घर हो शिक्षा का प्रसार, यह चाह हृदय में सदा पली॥ दर्शन, चारित्र, ज्ञान से ही, तुमको समाज ने रत्न कहा । तुम जहां-जहां पर पग धरते, उस जगह धर्म का सिन्धु बहा ॥ वाणी में तेज अलौकिक है, समता, शुचिता का पूर्ण मिलन!! हे तपारत्न, भारत-भूषण, अपित जग का शत अभिनन्दन! तुमने समाज-उद्धार किया, दे दिया धर्म-अमृत प्याला । है यह समाज चिर ऋणी, अहो, आदेशों को झुक-झुक पाला ॥ तुममें हैं दोनों मूत रूप, .. आचार्य शान्तिसागर का तप । यह जो जोवन का पुष्प खिला, उसकी सुगन्ध से सुरभित नभ । धरती का ओर छोर महका, जल की लहरों पर भी वैभव ॥ जो आप सदृश मुनिरत्न मिले, हैं धन्यभाग, ये गूजे स्वर । युग-युग की घोर साधना से, यग-पुरुष जन्म लेता भू पर। चरणों में करते नमन सभी, जिनवाणी का करके गुजन!! हे तपोरत्न, भारत-भूषण, अर्पित जग का शत अभिनन्दन!! min OLDITLI0000000 000000000 .000 .0 0 . . . . . . . . . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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