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________________ परमहंस आचार्यरत्न को शतशत बार प्रणाम -कल्याण कुमार जैन 'शशि' मुनि पद की गरिमा का ध्वज, फहराया चारों ओर, वर्तमान युग में उत्तम तप-निष्ठा के सिरमौर । मुनि-पद्धति के संरक्षण में, रहे नितान्त कठोर, नग्न दिगम्बरता के जग में, यश का ओर न छोर ।। चरण जहाँ भी पड़े, बन गया जंगल-मंगल धाम ! परमहंस, आचार्यरत्न को, शत-शत बार प्रणाम । स्याद वाद का, अनेकान्त का, किया पुनीत प्रसार, शिथिलाचरण नई पीढ़ी को, दिये नवीन विचार । खण्डहर बनते जिन तीर्थों के, किया जीर्ण-उद्धार, पथभ्रष्टों में भरे धर्म के चारित्रिक संस्कार ।। अगनित विद्या-केन्द्र, गहनतम प्रतिभा के परिणाम ! रात-दिवस अध्यात्म प्रगति में कहीं न रञ्च-विराम ॥ रिक्त-क्षेत्र को विविध रूप में, मिला मूर्ति का रूप, बना खानिया, चलगिरी, चिरवन्दनीय-चिद्रूप। पधरा दिये अयोध्या में, आदीश्वर आदि-स्वरूप, क्षेत्र-क्षेत्र में केतु उड़ाते, मन्दिर मानस्तूप ॥ सरस्वती के पुत्र विलक्षण, चुडामणि सरनाम ! सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित, करते मन में विश्राम ।। मुनियों की गत परम्परा के बरगद-वृक्ष विशाल, जिज्ञासाओं के संरक्षक, विध्वंसक भ्रम-जाल । पूर्वाचार्य प्रणीत धर्म की ज्योतिर्मान मशाल, धर्म-प्राण, प्रेरणा स्रोत, अभिनन्दनीय चिरकाल ॥ बाल ब्रह्मचारी व्रतधारी, निर्विवाद निष्काम ! अगणित, अन्तरहित हैं सक्रिय, रचनात्मक आयाम !! आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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