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धन्य देश वह
-डा० कस्तूरचन्द्र 'सुमन'
अविरल बहती जहां गंग-सी संतों की परिपाटी।
धन्य देश वह, धन्य सभ्यता, धन्य वहाँ की माटी॥ श्रमण सभ्यता के उन्नायक धर्म-प्राण जो भू पर, परम पूज्य आचार्य रत्न श्री सत कंत जो मुनिवर। सार्थक नाम देशभूषण जो भारतीय अध्येता, योगी अनासक्त वर चिन्तन जिनका उनके नेता।
वीतरागतामयी सुपथ को मूर्तिमती जो घाटी!
जिन्हें प्राप्त कर धन्य हुई है भारत भू की माटी !! ग्राम कोथली, बेलगांव कर्नाटक भू है बांकी, जहाँ अवतरी संत प्रवर की अनुपम जीवन झांकी। उपदेशामृत से बरसायी शान्ति सुधारस वर्षा, मात्र नहीं मानव, हर प्राणी जिनसे भू पर हर्षा ।।
दुख-सुख-गेंद खिलाड़ो यतिवर ले निस्पृहता हाकी! खेल रहे, पा रहे विजय तुम ही हे ! शिव-पथ बाटी!!
आर्य जगत् की परम विभूति बहुभाषा विज्ञेता, साधु दिगम्बर धर्मस्नेही, हे उपसर्ग विजेता। निस्पृह साधु, सभ्यता प्रेमो, धन्य धन्य है चितन, महापुरुष हे महातपस्वी, तुम हो पाप-निकंदन ॥
जैनधर्म की विजय-पताका लहराने को लाठी! जग-बंधन की कर्म-शृंखला जिसने तप से काटी!!
महामनीषी बालब्रह्मचारी का हो अभिनन्दन, जिनके चरण युगल में जगती करती नित प्रति वन्दन । वाणी जिनको परमहितैषी ज्यों हितकारी चन्दन, लगते हैं गुरु ऐसे मानो हैं जिनेन्द्र लघुनन्दन ॥
श्रद्धा-'सुमन' समर्पित मेरे, हे ! आगम के पाठी! शत-शत नमन धर्म हित जिनके जीवन की परिपाटी!!
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उसवन्तिका ..
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