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स्तति पंचक -डॉ. योगेनानाथ शर्मा 'अक्षण'
हे भारत के संत तेजस्वी
कर ज्ञानामत जगती को, तमस्-गरल का नाश किया! हे ज्ञान-रत्न! तुमने जग को,
जैनत्व का दिव्य प्रकाश दिया!!
शमित हुई मन की शंकाएं,
धर्म का दीप जलाया ऐसा! भटका मानव संभला जिससे, ..
कर्म का गीत सुनाया ऐसा!!
-जयप्रकाश 'जय' हे गौरव पुरुष, तव जन्मदिवस पर अभिनन्दन! तुम आत्मजयी तुम दीन-दुखी के रहे मीत, जन-जन को प्यार दिया तुमने हे चरित्रवान! तुमने किया मानवजाति कल्याण । जिसने भी सुना उपदेश किया उसने नव चरित्र निर्माण । तुम भक्ति-साहित्य पुजारी हो! हे महापुरुष, तुम हो महान् हे शांति दूत, आदर्शवान् हे सम्पूर्ण भारत के पद-यात्री, हे परम वन्दनीय तपस्वी। तुम सुर-सरि हो तुम सूरज हो, हे भारत के संत तेजस्वी!
मल हुई जब भी जिससे भी पक्षमा उसे तत्काल किया!
दया का मंत्र सिखा मानव को,
उसका हृदय विशाल किया!!
बट-दर्शन का सार संजोकर, निज वाणी में साकार किया! तुम जैन-धर्म के सूर्य बने,
ज्योति का नव उपहार दिया!!
व ज्योति मिली जग को तुमसे, सादर अर्पित शत-शत वन्दन! इस 'देश' के हे सच्चे 'भूषण' स्वीकारो मेरा अभिनन्दन!!
HIROMAL
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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