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इन्द्रियजयी श्री देशभूषण जी
- सुमत प्रसाद जैम
इन्द्रियजयी
आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी
आप, तपोमंडित
वैभव सम्पन्न उर्वर भारतवर्ष की अध्यात्म विद्या के
गौरवपुरुष हो ! क्योंकि
आपने
स्वानुभूतियों के अर्घ्यदान से जन्म और मृत्यु के चक्र में
परिभ्रमण करती हुई
अजर, अमर
अनश्वर
सनातन आत्मा से
साक्षात्कार कर
प्रकाश के अखंड साम्राज्य में
प्रवेश कर लिया है !
प्रभापुंज !
आपने अपने दिव्य आलोक से मेरे युग को शापित
बदनाम
भोतिकता से ग्रस्त वासनाजन्य संस्कृति के
दग्ध भाल पर अमर शान्ति का आत्मजयी
महाकाव्य लिख दिया है !
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आचार्य श्री.
आप,
मेरी समाराधना के
आराध्यपुरुष हो !
आपने
दासता के दैत्याकार पंजों में सिसकते,
सर्वथा उपेक्षित,
दक्षिण भारत के एक अनाम ग्रामकोयलपुर में
जन्म लेकर
अपने परम पौरुष,
स्व साधना से उद्भूत,
Dever
भेद विज्ञान की सांस्कृतिक शलाका से
तोड़ दिए युग-युग के बन्धन !
हे शताब्दियों की समर्पित साधना के प्रतिफल ! देहवारी होकर भी,
सर्वया विरक्त ! अनासक्त ! !
आत्मस्थ !!!
आचार्य रत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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