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________________ धर्म-दीपक ता रहे । इसी भावना से कार्यश्री की गौरवगाथा को अमर परम्परा के इतिहास और सम्पादन म आचार्य सुबल सागरजी महाराज योगेन्द्र चूडामणि सम्यक्त्व शिरोमणि भारतगौरव आचार्यरत्न श्री १०८ गुरुवर्य श्री देशभूषण महाराज के चरण कमलों में मुनि सुबल सागर का आचार्य भक्तिपूर्वक त्रिवार नमोऽस्तु । यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करने वाले आचार्य श्री देशभूषण देश के भूषण हैं। दिल्ली से लेकर कन्याकुमारी तक विहार कर समग्र प्राणियों को आपने धर्मामृत रूप वाणी का पान कराया है। इस दुर्धर दुःषम काल में कल्पवृक्ष के तुल्य एवं चिन्तामणि रत्न के समान आपने संसार के तड़पते प्राणियों के सन्ताप को धर्मोपदेश से शान्त किया है। गुण रत्नों में समुद्र तुल्य, समुद्र जैसी गम्भीरता लिए हुए आप जैसे गुरु दुर्लभ हैं । जैसे चन्दन वृक्ष से सांप चिपके रहते हैं वैसे ही शिष्य आपसे चिपके रहते हैं । चन्दन वृक्ष साँपों को दर नहीं करता, आप भी अपने शिष्यों से दूर रहना पसन्द नहीं करते । आपकी धर्म प्रभावना से अनेक दीक्षित हुए हैं तथा अनेक व्रतों के धारक बने हैं। आपने कई लोगों का रात्रि-भोजन त्याग करवाया तथा अष्टमूलगुण धारण करवाया । हिन्दू, मुस्लिम, हरिजन आदि जातियों के लोगों ने आपके धर्म प्रवचनों को सुनकर मद्य-माँस-मधु का त्याग किया है। संसार रूपी अंधेरे में भटकने वाले हमारे जैसे कितने ही अज्ञ जीवों का आपने धर्म-दीपक के प्रकाश से मार्ग-दर्शन किया है । आपका शुभाशीर्वाद सदा हमारे मस्तक पर रहे तथा मेरा मस्तक आपके चरणों में रहे इसी भावना के साथ त्रिवार नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, नमोऽस्तु । चन्दन न वने वने गणधराचार्य कुन्थुसागर जी शेडवाल भारत भूमि धर्मसाधना की ऐतिहासिक स्थली है, महान् पुरुषों की जन्म खानि है। इस भूमि पर अनेकानेक महापुरुष एवं अवतारी पुरुष और साधु सन्त हुए हैं। इसी परम्परा में हमारे विश्वविख्यात भारत गौरव आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज हैं। आपने भारतवासी जन-जन का कल्याण किया। साहित्य सेवा के क्षेत्र में आपकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। ऐसी विभूति का सान्निध्य हमारे लिए अत्यन्त सौभाग्य की बात है। भगवान् श्री अर्हन्त देव से मैं यही प्रार्थना करता हूँ कि आपके द्वारा चिरकाल तक जन-जन का कल्याण होता रहे । इसी भावना से आचार्य श्री के चरणों में त्रयभक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ । ___ अत्यन्त हर्ष का विषय है कि आचार्यश्री की गौरवगाथा को अमर बनाने हेतु 'आस्था और चिन्तन' नामक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रस्तुत हआ है । यह अभिनन्दन ग्रन्थ भारतीय तत्त्व चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में जैन परम्परा के इतिहास और उसके योगदान को निरूपित करने वाला अद्वितीय ग्रन्थ है । इस प्रकार का आयोजन करने वाली अभिनन्दन ग्रन्थ समिति और उसके सम्पादन मण्डल को हमारा साधुवाद एवं आशीर्वाद है शैले शैले न माणिक्य, मौक्तिकं न गजे गजे। साधवो न हि सर्वत्र, चन्दनं न वने वने ॥ अनेकान्त सार्वभौम मुनि श्री देवनन्दि जी शेडवाल आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज तारण-तरण, निज-परहित दक्ष, मंगल भावना के स्रोत, अनेक गुण मण्डित, भद्रपरिणामी, करुणा के सागर, धर्म प्रभावक, समाजोद्धारक, जैन साहित्योद्धारक, तीर्थक्षेत्र निर्मापक, बहुभाषा विशारद, एवं जैन दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान होने के कारण वर्तमान कालिक साधुओं की परम्परा में एक अद्वितीय असाधारण साधुरत्न हैं। महाराजश्री का धर्मानुराग, गहन प्रतिभा एवं तत्त्वजिज्ञासु वृत्ति आश्चर्यजनक है । आचार्यश्री का जीवन सतत साधनारत है। असाध्य साधना ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। समस्त प्राणियों के प्रति उनमें दया व करुणा का भाव स्पष्ट दिखाई देता है। वे सभी के चरमोत्कर्ष व कल्याणाकांक्षी हैं। आचार्यश्री स्वाध्याय, तत्त्वचिन्तन, विचारधारा से अत्यन्त शुद्ध व अपूर्व होने के कारण "अनेकान्त सार्वभौम" की उपाधि से विभूषित किए गए हैं। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अल्प विराम लेते हुए इच्छा व्यक्त करता हूं कि आचार्यश्री जी का जीवन प्रत्येक प्राणी का आदर्श बने । आचार्यश्री का जीवन व यशगान इस भूमण्डल पर चिरकाल तक अमर रहे । मेरी यह शुभकामना है कि यह अभिनन्दन ग्रन्थ प्राणी मात्र के लिए उपयोगी हो। १४० आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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