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________________ सफल मार्ग-दर्शन आचार्यश्री का मार्गदर्शन एवं व्यक्तित्व बहुत ही उच्चकोटि का रहा है। मुझे अच्छी तरह से याद है कि १००८ भगवान् ऋषभदेव जी का जिनालय अयोध्या जी में लाला उल्फतराय जी आदि देहली वालों को प्रेरणा देकर सम्पन्न कराया । यह श्री आचार्य जी के आदेशानुसार ही पूरा हुआ था । सम्मेदशिखर जी के विवाद के समय आचार्यश्री जी की प्रेरणा से ही कड़ी धूप और गर्मी में जैन समाज के लाखों स्त्री-पुरुष एवं बच्चे प्रधानमन्त्री के यहाँ ज्ञापन के रूप में जुलूस व रैली द्वारा उपस्थित हुए थे । प्रधानमन्त्री के आश्वासन पर ही सम्मेदशिखर जी के विवाद और मुकदमेबाजी में कुछ नरमी आई थी। सेठ सुनहरी लाल जैन आगरा श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के जीवदया विभाग की ओर से मैंने कई बार आचार्यश्री जी के दर्शन किये और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्हीं के आशीर्वाद से मैं हजरतपुर के कट्टीखाने को बन्द कराने में सफल हुआ था। इसके लिये काफी प्रयास किया गया और हाईकोर्ट तक केस भी लड़ा गया और स्टे बगैरह भी लाया गया। यहां तक कि बुलडोजर वगैरह भी आये, परन्तु वापिस गये । उस वक्त मिनिस्टरी में श्री यशवन्त राव चव्हाण जी थे। उनसे भी पत्र व्यवहार किया गया, जिसके फलस्वरूप उन्होंने हमको आमन्त्रित किया और हम उनकी सेवा में हाजिर हुए। हमने उन्हें सन्तुष्ट कराने की काफी चेष्टा की, परन्तु उन्होंने हमारी एक बात भी स्वीकार नहीं की । वहां से हम चले आये । परन्तु आते समय हमने उनसे कह दिया था कि यदि आप इसको नहीं रोकेंगे तो यह स्वतः ही बन्द हो जायेगा। इनसे मिलने के पहले हम और भी कई मिनिस्टरों से मिले थे, जो कि थोड़े बहुत परिचित थे। मगर हमारा साथ किसी ने भी नहीं दिया और कुछ न कुछ बहाना बना कर टाल दिया। कई मिनिस्टरों ने तो हमको आश्वासन भी दिया कि वे इस बारे में विचार-विमर्श हेतु श्री चव्हाण जी के पास आ रहे हैं, परन्तु बाद में कोई नहीं पहुंचा । फिर भी आचार्यश्री के आशीर्वाद और प्रेरणा से हम प्रयास करते रहे और अन्ततः यह कट्टीखाना बन्द हो गया । D तपस्वी साधुराज पं० जमुनाप्रसाद जैन शास्त्री बालब्रह्मचारी आचार्यरत्न श्री १०८ देशभूषण जी महाराज आचार्य परम्परा के प्रवर्तक एवं परम आध्यात्मिक सन्त हैं । मुझे महाराजधी के बाराबंकी (उ० प्र०) चातुर्मास के समय सान्निध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ था जीवित पंचमी की प्रतिमा, साक्षात् मोक्षमार्ग रूप से तपस्वी साधुराज अपने सम्पर्क में आने वाले छोटे-बड़े अमीर-गरीब विद्वान् मूर्ख सभी नर-नारियों के चित्त से साम्प्रदायिकता का परित्याग कर सदाचार, संयम आदि सद्गुणों की प्रतिष्ठा करते हैं । ऐसे वीतरागी दिगम्बर जैन सन्तों के प्रति जन-मानस ने समय-समय पर अपने शुभ भाव प्रकट किये हैं। ऐसे श्रेष्ठ आचार्य के चरणों में हमारा भी सादर प्रणाम निवेदित है । पावन व्यक्तित्व O मिश्रीलाल शाह जैन शास्त्री तपोनिधि आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी इस भारत भूखण्ड की अनुपम जीती-जागती ज्योति हैं । अपरिग्रहवाद जिससे कि आज शासन और उसके वर्तमान शासक मन्त्री आदि नेतागण भी प्रभावित हैं, उस अपरिहबाद के ही जो साक्षात् मूर्तिमान स्वरूप हैं, और जो दुनिया को सीमित परिग्रह और निष्परिग्रहवान् बनने की वाणी से प्रभावित करते रहते हैं, जिनके मीत उष्ण क्षुधातृषादि परीषद् विजय को देखकर एवं निरीहवृत्ति, सांसारिक आकाङक्षाओं का दमन, आशा तृष्णा विहीन वृत्ति तथा आदर्श चर्या को देखकर विरोधी अज्ञानी लोग भी अन्ततोगत्वा नतमस्तक होते देखे गये हैं । यह आपकी महान् आत्मशुद्धि एवं तपस्या का ही फल है। कुछ वर्ष पहले की घटना है कि कलकत्ता वर्षायोग में आप बराबर १० रोज तक आहार की विधि (तपरिसंख्यान) न मिलने पर निराहार रहे, फिर भी मुंह पर विषाद नहीं था - ११वें रोज विधि मिलने पर ही आहार हुआ और तब इस कठोर साधना से जैनाजैन जनता में आपका जयजयकार फैल गया । कलकत्ता में बंगाली लोग नग्न वेश पर आपत्ति करते थे, पर अन्त में वे ज्ञानध्यानरत तपोमय साधु को देखकर पश्वात्तापूर्वक शान्त हो गये थे। यह है आपकी पंचेन्द्रिय विषयाशाविहीन वृत्ति का परिणाम ब्रह्मचर्य व्रत का माहात्म्य । कालजयी व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only १३३ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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