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________________ निष्काम साधक श्री अभयकुमार जैन इस युग के श्रमण-संस्कृति के सूत्रधार हमारे आद्य तीर्थंकर भ० ऋषभदेव हैं, जिन्होंने कर्ममूलकसंस्कृति के प्रारम्भ में श्रमणधर्म को अंगीकार-आत्मसात् कर आत्मोद्धार तो किया ही, साथ ही आगे के लिये श्रमण-संस्कृति के विकास तथा प्रचार-प्रसार हेतु मार्ग खोला था। तब से आज तक श्रमण-संस्कृति का वह अक्षुण्ण धारा प्रागैतिहासिक काल से इस भारत वसुन्धरा पर प्रवहमान होकर सर्वत्र सर्वकालों में जन-जन के संसार-ताप को शान्त-शीतल करती आ रही है। इसके सतत प्रवाह तथा उन्नयन में हमारे प्रातःस्मरणीय परमेष्ठीत्रय--आचार्य-उपाध्याय-साधु का भी महान् योगदान रहा है। ऐसी ही महान् विभूतियों में श्रमणराज योगीन्द्र आचार्यरत्न १०८ श्री देशभूषण जी महाराज हैं। आप श्रमण-सभ्यता तथा संस्कृति के मूर्तिमान् प्रतीक हैं। आपकी आत्मसाधना तथा तपश्चर्या मानव-कल्याण के लिये अप्रतिम वरदान है। विगत अर्द्धशताब्दी से अपने अनुपम कठोर आत्मसाधना के पथ पर चलते हुए, निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिधर्म का पालन करते हए आप राष्ट्र एवं समाज की सर्जनात्मक स्वरूप-संरचना में संलग्न हैं । आप धर्म-प्राण हैं । अन्तः बाह्य दोनों ही रूपों में आप धर्मसमाहित हैं। धर्म एवं संस्कृति को जन-जन तक पहूचाने हेतु आप पूर्ण समर्पित हैं । आपके धार्मिक, सामाजिक, आध्यात्मिक तथा नैतिक संदेश लोगों को नूतन दिशाबोध देते हैं तथा उन्हें सन्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं । विभिन्न कारणों से लुप्त हो रही दिगम्बर साधु-परम्परा को पुनरुज्जीवित कर नया मोड़ देने वाले आचार्यों में से आप एक हैं। आप की अमृतोपम वाणी में भारतीय संस्कृति और दर्शन की सार्वभौम आध्यात्मिक चेतना के दर्शन होते हैं। - आप बहभाषाविज्ञ, सतत साहित्याभ्यासी, मौलिक गंभीर चिन्तक, ज्योति-पुंज, तपःपूत सन्त तथा आदर्श मनीषी विद्वान् हैं । अतः अनेक मौलिक ग्रन्थों की सर्जना कर, अनेक को अनूदित कर तथा अनेक को भाषारूपान्तरित कर आपने विभिन्न भाषा-भाषियों को दर्लभ-दुर्बोध साहित्य सर्वसुलभ, सुबोध व उपादेय बनाया है तथा जैन वाङमय को भी अभिवृद्ध किया है। परमपूज्य आचार्यश्री श्रमण-सभ्यता एवं संस्कृति के उन्नायक जगतोद्धारक आदर्श सन्त हैं । भारत के विभिन्न अञ्चलों में धर्म, धर्मात्मा, धर्मायतन, जिनालय, विद्यालय, पाठशाला, धर्मशाला, आश्रम, गुरुकुल आदि के संरक्षण तथा संवर्द्धन हेतु समाज एवं समाजप्रमखों को आपसे सदैव मार्गदर्शन, दिशाबोध, प्रेरणा तथा नैतिक सम्बल प्राप्त होता रहता है। पूज्य आचार्यश्री गुणाकर, क्षमाशील, सहिष्ण और उदार सन्त हैं । आपका व्यक्तित्व आकर्षक प्रभावी व प्रेरक होने के साथ-साथ अचिन्त्य है, अथाह है, अगाध है, गम्भीर है। आपके व्यक्तित्व का पार पाना कठिन है, वह शब्दातीत है, शब्दों से परे है, तथापि आपमें असाधारण पाण्डित्य, दृढ़ संकल्प शक्ति, अपर्व त्याग, निष्काम साधकता, निराकुलता, निस्पृहता, अनासक्तता, तपस्तेजस्विता, अद्भुत जितेन्द्रियता, चारित्र की दृढ़ता, ज्ञानोपयोगित्व आदि अनेक गुण हैं। मेरी भावना है कि आचार्यप्रवर सुदीर्घकाल तक अपने पावन सन्देशों से जन-कल्याण करते हुए प्रेरणा व नूतन दिशाबोध देते रहें। श्रमण संस्कृति के उन्नायक डॉ० शोभनाथ पाठक परमपूज्य आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज की तपस्या में भगवान् महावीर के पांच महाव्रतों को अंगीकार कर, उसके प्रसार-प्रचार में निमग्नता को निरख कर मैं बेहद प्रभावित हूं । सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य तो मानो उनमें मूर्तिमान हो गया हो। भगवान् महावीर के इन पांच व्रतों की सहकारिता आचार्यश्री में परख कर श्रद्धाभिभूत उन्हें श्रमणथेष्ठ की गरिमा से गौरवान्वित करना इस अभिनन्दन ग्रन्थ की महत्ता का परिचायक होगा। कठोर तप और साधना के समष्टिमयी सम्बल से जिनका व्यक्तित्व और कृतित्व राष्ट्रीय स्तर पर अप्रतिम बना हुआ श्रद्धालुओं को मन्त्रमुग्ध कर रहा है, वहीं पांडित्य की प्रखरता, मानवीय कल्याण की महत्ता से मंडित आचार्यश्री के अभिनन्दन के उफान को आंकना संभव नहीं हो रहा है कि कितनी आस्था उनके कमलवत् चरणों में उड़ेल दूं। १३२ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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