SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना की पराकाष्ठा श्री जिनेन्द्र कुमार जैन बंगलौर __ मेरे निकट परिचित श्री सुरेश चन्द जैन, सुपुत्र स्वर्गीय लाला निरंजन दास जी जैन, नवीन शाहदरा, दिल्ली नवम्बर १९७६ में अपनी श्रवणबेलगोल की यात्रा के अवसर पर मेरे निवास-स्थान पर बंगलौर में पधारे थे। उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि मैं भी श्रवण बेलगोल चल कर भगवान् श्री बाहुबली जी की प्रतिमा के दर्शन एवं आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज का सान्निध्य प्राप्त करूं। श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में जन्म लेने के कारण दिगम्बर मुनियों में मेरी कोई आस्था नहीं थी किन्तु उनके स्नेहपूर्ण आग्रह को मैं किसी भी प्रकार न टाल सका। १३ नवम्बर, १९७६ को भगवान् श्री बाहुबली जी के पावन दर्शन के उपरान्त १४ नवम्बर, १९७६ को रात्रि में आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज के दर्शन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। पूज्य आचार्यश्री के मौन के कारण किसी प्रकार का वार्तालाप नहीं हो पाया, किन्तु उनके भव्य व्यक्तित्व ने मुझे सम्मोहित-सा कर दिया। अगले दिन आहार के समय करपात्रों में नीरस-सा भोजन ग्रहण करते हुए जब मुझे उनके दर्शन हुए और यह ज्ञात हुआ कि आचार्य महाराज केवल एक समय ही सीमित भोजन एवं जल लेते हैं, तब मेरा मन आश्चर्य से भर गया और उनकी साधना का अवलोकन करते हुए मेरी आंखों से अश्रुपात होने लगा। मैंने यह अनुभव किया कि हम संसारी प्राणी वास्तव में आत्मोत्थान के लिए कुछ भी नहीं करते । हम तो सारा जीवन विषय-वासना एवं अनावश्यक कार्यों में व्यतीत करते हैं। मनुष्य के जन्म की सार्थकता का हम कुछ भी लाभ नहीं उठाते। आचार्य महाराजश्री के दर्शन ने ही मुझ त्यागी मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और मैंने स्वयं ही रात्रि-भोजन का त्याग कर दिया । महाराजश्री के दर्शनों से मेरे जीवन में एक अभूतपूर्व परिवर्तन आया और मेरे व्यवसाय में दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की होती चली गयी । आज हमारे परिवार में महाराजश्री के सान्निध्य के कारण धार्मिक संस्कारों का प्रवेश हो गया है। मेरी निरन्तर यह कामना रहती है कि आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज के पावन चरण-कमलों में रह कर मैं अपने जीवन का शेष भाग व्यतीत करूं और आत्मकल्याण के पथ पर निरन्तर चल सकू। पवित्र जीवन श्री केवलचन्द एच० रावत एडवोकेट आचार्य श्री देशभूषण जी का व्यक्तिगत जीवन बहुत ही पवित्र है । जो भक्त आपके दर्शन करता है वह श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है । उनके जीवन का व्यक्तिगत प्रभाव मानव के हृदय-पटल पर अंकित हो जाता है। वह शांति, त्याग, तपस्या और बलिदान की मूर्ति परम दिगम्बर, निर्वस्त्र, स्वात्म में लीन हैं। उनकी आत्मा में क्षमा, दया, तप, त्याग, आंकिचन्य, ब्रह्मचर्य का विशेष स्थान है । संसार के मोह, माया का त्याग कर वे निष्परिग्रह बन गये और आत्मसाधना करने लगे। अब वे पंचपरमेष्ठी पद में स्थित रहते हैं और मुनि मार्ग का अक्षरश: पालन करते हैं। महाराजश्री वर्तमान युग के सही मार्गदर्शक हैं । वर्तमान समय में जब मनुष्य भयभीत और पथभ्रष्ट है, उसे कहीं मार्ग नहीं मिल रहा है, ऐसे कठिन समय में जैन धर्म ही सही मार्ग-दर्शन दे सकता है तथा चारित्र-चक्रवर्ती तपस्वी मुनिराज ही धर्मोपदेश द्वारा सच्चे जिनधर्म की व्याख्या कर सकते हैं। सर्वसाधारण की समझ में बात आ जाय, यही धर्म को समझाने का सही तरीका है। योगी पुरुष महाराज श्री देशभूषण जी ऐसे विद्वान हैं जो सरल भाषा में सर्वसाधारण को समझा सकते हैं । यद्यपि वर्तमान युग में मार्गदर्शक के रूप में उपाध्याय मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज भी विराजमान हैं, अन्य मुनिराज भी हैं, जो धर्म के सिद्धान्तों को समझा रहे हैं, मेरा और भी मुनिसंघ तथा मुनियों से सत्संग हुआ और मैं उनसे भी बहुत प्रभावित हुआ परन्तु आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से विशेष प्रभावित हुआ। कालजयी व्यक्तित्व १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy