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________________ सार्वजनीन हित के प्रेरक श्री कन्छेदो लाल जैन आचार्यश्री के दर्शनों का सुयोग मुझे आज से लगभग २५ वर्ष पूर्व दादरी में मिला था। उस समय वे दिल्ली से सिकन्दराबाद की ओर जा रहे थे । दादरी में उनके रुकने की व्यवस्था उसी कालेज में की गई थी जिसमें मैं शिक्षक था। मैंने हमेशा यही अनुभव किया कि उनका दृष्टिकोण उदार है। सिकन्दराबाद में समाज ने आचार्यश्री की प्रेरणा से ऐसा धर्मार्थ औषधालय खोला था, जिससे सभी जनसमुदाय लाभ लेता था । सार्वजनीन हित की प्रेरणा देने वाले साधु विरल ही होते हैं। उनके प्रवचनों के दो भाग दानवीर सेठ जुगलकिशोर जी बिरला एवं अखिल भारतीय आर्य हिन्दू धर्म सेवा संघ की ओर से प्रकाशित हुए थे, जिन्हें पढ़ने, देखने का सुयोग मुझे गाजियाबाद के जैन मन्दिर में मिला था। जैनेतर समाज द्वारा प्रवचनों के प्रकाशन हेतु आर्थिक सहयोग दिया जाना आचार्यश्री के उपदेशों की सरसता, सारगभिता और जैनधर्म को विश्वधर्म के रूप में प्रचारित करने की क्षमता का द्योतक है। साड़ी पर हवन श्रीमती जयश्री जैन विश्व में संतों की महिमा का अपूर्व यशोगान हुआ है। संतों के बिना संसार असार है। संतों की आम्ताय में जैन धर्म के सन्तों का स्थान सर्वोच्च है। मैं ऐसे ही निस्पृही मुनि आचार्य देशभूषण जी महाराज का एक पुनीत संस्मरण प्रस्तुत कर रही हूं। घटना काशी की है। वहाँ महाराज श्री आचार्य देशभूषण जी का मंगल पदार्पण हुआ। आपकी अलौकिक सिद्धियां प्रसिद्ध हैं। आपने एक बनारसी साड़ी मंगवाई और उसे जमीन शुद्ध करके बिछा दिया। जनसमुदाय कौतुहल से देख रहा था । आपने उस नवीन साड़ी पर मन्त्रों से हवन प्रारम्भ कराया । साड़ी के ऊपर ही अग्नि प्रज्ज्वलित करके हवन किया गया। हवन शान्तिपूर्वक एक-डेढ़ घण्टे में समाप्त हआ। इसके बाद उस साड़ी को उठाया गया। किन्तु उपस्थित जन-समुदाय यह देखकर दंग रह गया कि हवन के बाद राख तो बच गई पर साड़ी का कुछ न बिगड़ा । वह अग्नि में तपे हुए कुन्दन के समान और भी अधिक चमक रही थी। ऐसा चमत्कार तपोनिधि आचार्य दिगम्बर मुनि देशभूषण जी महाराज में आज भी शतधाप्रकारेण विद्यमान है। उनके चरणों में शतशः नमन । सजीव तीर्थ कु० किरणमाला जैन सागर, म० प्र० श्री १०८ आचार्य देशभूषण जी महाराज यथार्थ में जीवित तीर्थ हैं जिनकी संगति या दर्शन करने से भारत के मानवों का प्रतिदिन हित हो रहा है और होता रहेगा। इस जीवित तीर्थ का अवतरण महाराष्ट्र तथा कर्नाटक के सीमास्थल बेलगांव के कोथली नामक ग्राम में हुआ था। देशभूषण नामक इस सजीव तीर्थ पर सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक् चारित्र, सम्यक् तप, श्रेष्ठ वीर्याचार रूप पाँच मन्दिर शोभायमान हैं जिनका दर्शन कर बाल, वृद्ध, युवक, नर-नारी सभी मोक्षमार्ग में चलकर अपना कर्तव्य पालन कर रहे हैं । भारत के इस मूर्तिमान रम्य तीर्थ पर अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह रूप हरे-भरे विशाल एवं फलप्रद वृक्ष खड़े हुए हैं जिनकी शीतल छाया में बैठकर सभी वर्ग के मानव तथा पशु-पक्षी शान्ति-सुधा का पान करते हुए आनन्दित हो रहे हैं । अनेक व्यक्ति यम नियम रूप अमृत फलों का आस्वादन कर संयमनिष्ठ जीवन की साधना कर रहे हैं। इस आध्यात्मिक तीर्थ से क्षमा विनय सरलत्व शौच सत्य संयम तपत्याग आकिञ्चन्य ब्रह्मचर्य स्वरूप अनेक धर्मों के निर्झर प्रवाहित हो रहे हैं जिनमें स्नान कर अज्ञानी ने ज्ञान, निर्बल ने बल, रोगी ने निरोगिता, अनाचारी ने आचार, अविचारी ने विचार, सुप्त ने जागरण और दानवों ने मानवता को प्राप्त किया है। इस चेतनात्मक तीर्थ से ज्ञान की सरिता प्रवाहित हुई है जिसमें से प्राकृत, संस्कृत, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगला, तमिल आदि विविध भाषा-भाषियों ने ज्ञान-जल का सकोरा लेकर पापताप को शान्त कर मानव-जीवन को पवित्र बनाया है। यह वह उन्नत तीर्थ है जिसने अनेक तीर्थों का जीर्णोद्धार, अनेक तीर्थों का उद्धार, अनेक मन्दिरों का निर्माण, पाठशालाओं, धर्मशालाओं और पुस्तकालयों का निर्माण कराया है। कालजयी व्यक्तित्व १२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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