SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतिशय क्षेत्र (बरेली) का विकास श्री सुमत प्रकाश जैन आचार्यरत्न १०८ श्री देशभूषण जी महाराज ने संघ सहित मार्च १६७४ में देहली से उत्तर प्रदेश की ओर विहार किया। महाराजश्री की इच्छा उत्तर प्रदेश में श्री अहिच्छत्र पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थक्षेत्र दिगम्बर जैन मन्दिर रामनगर किला जिला बरेली के दर्शन करने की हुई । महाराजश्री का संघ दिल्ली से विहार करके गाजियाबाद, हापुड़, गजरौला, हसनपुर, संभल, चंदौसी होते हुए अप्रैल में श्री अहिच्छत्र जी पर जा पहुंचा था। अधिकतर रास्ता मुस्लिम बहुल था परन्तु महाराजश्री के अभूतपूर्व व्यक्तित्व, ओजस्वी भाषण, मधुर वाणी एवं सरल स्वभाव से गांव-गांव के न केवल जैन बन्धु बल्कि सभी समुदायों के स्त्री-पुरुष व बच्चे बहुत ही प्रभावित होते थे और सैकड़ों लोगों ने उनके मधुर उपदेश सुनकर मद्य-मांस आदि का सेवन त्याग दिया। ग्रामवासी महाराजश्री को अपने गांव में अवश्य ठहराते थे तथा कुछ उपदेश सुनकर ही आगे जाने देते थे। आगे की हर व्यवस्था में वे अपना पूरा सहयोग देते थे एवं मीलों संघ के साथ पैदल चलते थे। इस प्रकार ग्रामवासियों ने जगह-जगह पर महाराजश्री की ओजस्विनी वाणी से लाभ उठाया । अप्रैल में श्री अहिच्छत्र जी पर जब महाराज श्री का संघ पहुंचा तब मैं भी साथ था। उस समय क्षेत्र पर श्री १०८ मुनि श्री शान्तिसागर जी भी ठहरे हुए थे। उन्होंने भी आचार्यश्री के संघ के पधारने पर बड़ी प्रसन्नता व्यक्त की। आचार्य देशभूषण जी महाराज का संघ श्री अहिच्छत्र जी पर तीन दिन ठहरा । क्षेत्र पर दर्शन करके तथा भगवान् पार्श्वनाथ की प्राचीन मूर्ति (तिरनाल वाले बाबा) की वन्दना करके आप बहुत ही प्रभावित हुए तथा क्षेत्र पर तिरनाल वाले बाबा की मूर्ति को बड़ा अतिशयवान बताया। महाराजश्री ने वहां पर दो पाठ भी करवाये । जिस दिन महाराजश्री क्षेत्र पर पहुंचे थे उससे अगले दिन ही प्रातःकाल की बेला में जब मैं महाराजश्री के दर्शन को गया तो उन्होंने कहा था कि इस क्षेत्र का शीघ्र ही विकास एवं नवनिर्माण होगा। महाराजश्री की इस वाणी को सुनकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ था क्योंकि उस समय न तो इस प्रकार की कोई योजना विचाराधीन थी और न भविष्य में किसी ऐसी योजना के आसार नजर आ रहे थे। परन्तु फिर भी महाराजश्री के कथन पर विश्वास हो गया था और केवल दो वर्ष बाद ही महाराजश्री की भविष्यवाणी साकार होती नजर आने लगी जब ८-१०-१९७६ को श्रावक शिरोमणि, दानवीर साहू शान्तिप्रसाद जी मुझे साथ लेकर क्षेत्र पर पहुंचे । साहू जी क्षेत्र के तथा तिरनाल वाले बाबा के दर्शन करके बहुत ही प्रभावित हुए तथा रात को क्षेत्र पर ठहरे। अगले दिन प्रातः पुनः क्षेत्र पर दर्शन करके क्षेत्र पर आये हुए सब लोगों के सामने उसके नवनिर्माण में अपना पूरा सहयोग देने की घोषणा कर दी और मुझे शीघ्र ही उसका एक 'मास्टर प्लान' बनाने को कहा । सेठ शिखर चन्द जी जैन (रानी मिल मेरठ वालों) के सहयोग से शीघ्र ही मास्टर प्लान बनवाया गया। सेठ शिखर चन्द जी ने भी अपनी ओर से हर प्रकार की सहायता का आश्वासन दिया । चार-पांच माह के अन्दर ही पूरा मास्टर प्लान व मॉडल तैयार करके साहू जी की स्वीकृति से निर्माण का काम चालू कर दिया गया और सब ओर से इस कार्य में पूरा सहयोग मिलता चला गया और एक वर्ष में ही इस क्षेत्र का न केवल नवनिर्माण एवं विकास हो गया बल्कि अप्रैल १९७८ में क्षेत्र पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा भी बड़ी धूमधाम से हो गई । ऐसी साकार हुई आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज की भविष्यवाणी। जिन लोगों ने क्षेत्र को १९७७ से पहले देखा है तथा फिर अप्रैल १९७८ के बाद देखा है वही इस नवनिर्माण एवं विकास का सही मूल्यांकन कर सकते हैं कि किस तरह से पूरे क्षेत्र का कायाकल्प हो गया है । क्षेत्र से वापिस दिल्ली को विहार करते हुए महाराजश्री रामपुर, अमरोहा, मुरादाबाद, हापुड़, पिलखुवा, गाजियाबाद होते हुए लगभग ढाई माह बाद वापिस दिल्ली पहुंचे । महाराजश्री के इस प्रकार उत्तर प्रदेश में विहार करने से जैन-अजैन सभी वर्गों में बहुत ही धर्म-प्रभावना हुई और लोगों ने उनकी अमृतवाणी का पूरा-पूरा लाभ लिया। उपसर्ग विजेता श्रीमती जैनमती जैन लगभग ७५ ग्रन्थों का विद्वत्तापूर्ण लेखन, सम्पादन व अनुवाद करने वाले, मराठी, गुजराती, कन्नड़, हिन्दी, अंग्रेजी, प्राकृत, संस्कृत आदि भाषाओं के वेत्ता, आचार्य जयकीर्ति जी महाराज के परम शिष्य और आचार्य विद्यानन्द जी जैसे आचार्यों के परम गुरु देशभूषण जी महाराज के जीवन में विभिन्न भयानक और दुविजेय उपसर्ग आये। आचार्यश्री ने तपस्या और आध्यात्मिक बल से निर्विकार रूप से उनको सहन कर दिगम्बर जैन श्रमण परम्परा का अनुकरण किया है। इस प्रकार के भयंकर उपसर्गों को जीतने वाले, परिषहों को सहने वाले, कठोर तपस्वी आचार्यरत्न श्री का मैं शत-शत अभिनन्दन करती हूं। १२८ आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy