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________________ कलकत्ता में ससंघ पदार्पण धर्मालंकार कमलकुमार जैन गोइल्ल आचार्यश्री ने पचास वर्ष के अपने साधु जीवन में आत्मसाधना के साथ सारे भारतवर्ष में यत्रतत्रसर्वत्र पादविहार से जो जैन एवं जैनेतर समाज में अहिंसा धर्म की ध्वजा फहराई वह सदा स्वर्णाक्षर में अंकित रहेगी। आपकी विद्वत्ता, वाणी की मधुरता, हृदय की गम्भीरता, मुखमण्डल की तेजस्विता, निरीहवृत्तिता, स्वाभाविक दयालुता, उपसर्ग सहिष्णुता, अनुपम क्षमता प्रभृति ऐसे अनेक अनुकरणीय एवं अभिनन्दनीय तथा वन्दनीय गुण हैं जो हम सरीखे अल्पज्ञों के द्वारा अनिर्वचनीय तथा अकथनीय हैं। विक्रम सं० २०१५ ई० सन् १९५८ के ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में शुभतिथि प्रतिपदा तदनुसार शुभ दिन रविवार के प्रात: काल पूज्यश्री ने अपनी पवित्रतर चरण रज से बंगाल प्रान्त की राजधानी तथा सारे भारतवर्ष की महानगरी कलकत्ता के कणकण को पवित्र किया था। आपका ससंघ चातुर्मास यहीं सानन्द सम्पन्न हुआ था। पूज्यश्री की आज्ञानुसार श्रावकशिरोमणि दानवीर आदि अनेक उपाधि समलंकृत श्री शान्तिप्रसाद जी जैन उद्योगपति जो साहु जी के नाम से सारे भारत में इस अपर नाम से भी विख्यात थे और जिनके यहां हम धर्मशिक्षक पद पर प्रतिष्ठित थे, इन्होंने ही हमें संघवर्ती साधु-साध्वियों के अध्यापनार्थ पूज्यश्री के श्रीचरणों में भेजा था। जब तक पूज्यश्री ससंघ यहां विराजमान रहे तब तक हमें ज्ञानदान का सौभाग्य प्राप्त रहा । यह हमारे जीवन का कर्तव्यशाली युग था। श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ मन्दिर बेलगछिया उपवन में संघ विराजमान था। चातुर्मास में सारा उपवन आप की अमृतमयी मधुवाणी से मुखरित रहा । सचमुच उस समय का दृश्य चतुर्थकाल की गरिमा एवं महिमापूर्ण दृश्य की काल्पनिक मूर्ति को उपस्थित करता था। आपके सारगभित जनोपकारी मधुर भाषगों को सुनने के लिये जनता की बाढ़-सी आ जाती थी। सारा पण्डाल खचाखच भर जाता था । बैठने को जगह न मिलने से हजारों श्रोताओं को पण्डाल से बाहर ही खड़े रहकर उनके प्रवचनों को सनने में भारी आनन्द का अनुभव होता था । वह सारा दृश्य आज भी हमारी आंखों के सामने ताजगी को लिये हुए दिखाई दे रहा है। ऐसे अप्रतिम, प्रतिभासम्पन्न, अकारणबन्ध, प्राणीमात्र के हितचिन्तक, साधुमना, आचार्यश्री शतायु हो और हम सरीखे अज्ञानियों को ज्ञान प्रदान करते रहें ऐसी १००८ भगवान् महावीर स्वामी के श्रीचरणों में सहस्रशः प्रार्थना है। सिद्धियों के धनी आचार्य जिनेन्द्र श्री देशभूषण जी महाराज एक सिद्ध तपस्वी हैं। एक बार इन्दौर से श्री मक्शी पार्श्वनाथ जी की ओर मुनि श्री देशभूषण जी महाराज के साथ नर-नारियों ने पैदल ही प्रस्थान किया । चलते-चलते मक्शी जी के करीब वह संघ पहुंचने वाला था कि घनघोर मेघों की घटा उमड़ आई। जंगली क्षेत्र था। नर-नारियों में व्याकुलता व्याप्त हो गई। महाराजश्री ने धर्म के आस्तिकों की भावना विचलित देखी तो सभी को जैनधर्म पर आस्था दृढ़ रखने का उपदेश दिया। सभी को एकत्रित कर गोलाकार में खड़ा कर अपने कमण्डलु के मंत्रित जल से गोलाकार को रेखांकित कर दिया । जल की घनघोर वर्षा आस-पास चारों ओर हो रही थी, किन्तु उस गोलाकार के अन्दर एक भी बंद प्रवेश नहीं कर सकी। सम्पूर्ण नर-नारियों ने महाराज देशभूषण जी के अगाध ज्योतिष्क ज्ञान से प्रभावित होकर गगन-भेदी जयकारों से उस वनप्रदेश को गुञ्जायमान कर दिया। यह प्रत्यक्ष सिद्ध चमत्कार है उन आचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज का जिन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष में जैनधर्म की ध्वजा फहराई है। मैंने अयोध्या के पंचकल्याणक में भी श्री महाराज जी की अद्भुत प्रतिभा की वन्दना की थी। ऐसे अनेकानेक शुभ अवसरों पर श्री महाराज जी के साक्षात् दर्शन करके मैं अपने को धन्य मानता रहा हूं। आचार्यश्री के अभिनन्दन समारोह पर हम दोनों पति-पत्नी चरणों में कोटिशः वन्दना करते हुए उनके दीर्घायुष्य की मंगल कामना करते हैं। १२४ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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