________________
मेरा तो उद्वार हो गया
सन् १९५४ की बात है। मैं राजकीय हाई स्कूल, माती कटला, जयपुर में १० वीं कक्षा में पढ़ता था। एक साथी से मेरी धनिष्ठता हो गई। उसे मैं अपने घर ले गया। उसने जब मेरे घर का खान-पान एवं वातावरण देखा तो उसे कुछ घृणा-सी हुई, लेकिन उसने मुझ से कुछ कहा नहीं मुझे मालूम हुआ कि मेरा यह दोस्त जाति से 'जैन' है अतः मैंने ही उससे कहा"दोस्त, माफ़ कर देना, हम मुसलमान लोग हैं, हमारा खान-पान कुछ ऐसा ही है।" इस पर मेरा दोस्त मुस्करा कर रह गया । इसी बीच हमारे स्कूल की दस दिन की छुट्टियां हो गईं और मेरा दोस्त मुझे अपने साथ एक मन्दिर में ले गया जहाँ एक मुनि महाराज उपदेश दे रहे थे। पहले ही दिन उनके उपदेश का मेरे दिल पर काफ़ी असर हुआ। जब सब लोग उपदेश सुनकर चले गए तो महाराज ने मेरी ओर देखा । मेरे दोस्त ने मेरा परिचय दिया। मैंने झिझकते हुए महाराज से निवेदन किया कि महाराज मुझे भी कुछ नियम दे दीजिए। तब महाराज ने मुझे खाने और न खाने लायक चीजों के बारे में बहुत कुछ बताया। मैंने तुरन्त मांस आदि न खाने का नियम ले लिया और सच मानो, मुझे उस समय से अंडे, मांस आदि से एकदम नफरत हो गई ।
अब तो मैं अपने दोस्त के साथ रोजाना ही महाराज के उपदेश सुनने जाने लगा। मैं बहुत समय से अंधेरे में था । महाराज ने मुझे उजाला दिखाया। आज मेरे परिवार वाले, ससुराल वाले मुझे "जैन" कहकर पुकारते हैं। सच्चा और नेक दिल इंसान बनाने के लिए अपने साथी वसन्त जैन का तो मैं आभारी हूं ही, लेकिन सबसे बड़ा आभारी तो मैं आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज का हूं जिन्होंने मेरा उद्धार कर दिया। सचमुच में देशषण जी महाराज में बहुत बड़ा चमत्कार है । मेरा बार-बार उनको नमस्कार हो ।
धर्म के महान् प्राचार्य
श्री जाहिद अली
( जयपुर )
Jain Education International
O
श्री प्रेमचन्द्र जैन मादीपुरिया
पंच, प्राचीन श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन पंचायत, दिल्ली
परमपूज्य आचार्यरत्न जो देशभूषण जी महाराज के प्रथम दर्शन मैंने अपने पूज्य पिता श्री कुन्दनलाल जी मादीपुरिया के साथ थी दिगम्बर जैन धर्मशाला, धर्मपुरा नया मन्दिर जी में सन् १९५५ में किए थे। इस प्रथम भेंटवार्त्ता के अवसर पर अपने पिता जी कि आचार्यश्री अपनी के साथ उनके वार्तालाप एवं शास्त्र चर्चा को देखकर मैं मुग्ध हो गया था। उस समय मुझे ऐसा लगा था असाधारण मेधा एवं कठोर तपश्चर्या से वर्तमान युग में जैनधर्म, दर्शन एवं संस्कृति के महान् संदेशवाहक बन जायेंगे। उनके भव्य व्यक्तित्व से प्रभावित होकर में उनके चरणों में धर्मोपदेश श्रवण करने के लिए जाने लगा।
वास्तव में स्वाध्याय, तपश्चर्या एवं धर्म महानगरी दिल्ली में आपने जो अद्भुत कार्य
महाराजश्री के निकट सम्पर्क में आने पर मैंने अनुभव किया कि आपका जीवन प्रभावना के लिए ही रह गया है। धर्मप्रभावना के निमित आप सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। किए हैं उससे जैन समाज का निश्चित रूप से गौरव बढ़ा है। उन्होंने महामुनि श्री विद्यानन्द जी को दिगम्बर दीक्षा प्रदान करके सम्पूर्ण राष्ट्र को एक आस्था का दीप प्रदान कर दिया है। आप स्वयं धर्म के महान् आचार्य हैं और उनके द्वारा दीक्षित मुनियों द्वारा आज इस पृथ्वी पर भगवान् महावीर स्वामी जी की पावन वाणी साकार हो रही है। मैं उनके चरणों में श्रद्धापूर्वक कोटि-कोटि नमोस्तु करता हूँ ।
११४
For Private & Personal Use Only
आचार्यरत्न भी देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
www.jainelibrary.org