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________________ कुछ अमिट यादें श्री श्रीपाल जैन कसेरे क्या लिखू, कैसे लिखू ? न मेरे पास वह लेखनी है, न वह शब्दकोश, न वह ज्ञान, न वह सामर्थ्य जिससे मैं उस परम गुरु के गुणों का वर्णन कर सकू, जिसके चरणों में मैं सदा नतमस्तक रहा हूं और सदा रहूंगा। वे गुरु हैं परम पूज्यनीय आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज । वे मेरे प्रेरक भी हैं, आराध्य भी । आज उनकी ५१ वर्षीय दिगम्बरी साधना के अवसर पर उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करने का आयोजन किया जा रहा है तो उनके अलौकिक व प्रेरक व्यक्तित्व की कुछ घटनाएँ मेरे मानस में भी उमड़ रही हैं। वे दृढ़निश्चयी हैं। कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने जयपुर में चूलगिरि पर निर्माण कार्य प्रारम्भ करा रखा था। दिन में चार-पांच बार वे खानिया जी से चलकर ऊपर चूलगिरि पर निरीक्षण करने जाया करते थे । वृद्धावस्था में यह काफी कठिन कार्य था । एक दिन उन्होंने निश्चय किया कि आज उस सड़क का निर्माण कार्य पूर्ण होना चाहिये जिस पर गाड़ियाँ ऊपर जा सके । ग्रीष्म का तपता हुआ महीना था। महाराजश्री की प्रेरणा एवं सम्बोधन से कार्य सम्पूर्ण हुआ और गाड़ी ऊपर पहुंची। प्रथम कार चालक और श्रमिकों को उन्होंने पुरस्कार दिलवाये । उस समय एक अप्रतिम तेज और सन्तोष का भाव महाराज जी के मुखमण्डल पर विराजमान था जो उनके दृढ़ निश्चय और तज्जनित सफलता के कारण ही संभव था। क्षमा और दया की भावना भी महाराजश्री में अद्वितीय है। एक बार कूचा बुलाकी बेगम की धर्मशाला में आप विराजमान थे । सामायिक के लिये जब वे बैठे तो एक सुन्दर घड़ी देखने के लिये उनके पास रख दी गई। कोई लोभी श्रावक अवसर का लाभ उठा कर घड़ी चुरा ले गया। महाराजश्री ने हमसे कहा कि समा देखने के लिये यहाँ घड़ी रखवा दो । हमारे द्वारा प्रश्न करने पर कि पहले वाली घड़ी कहाँ गई, महाराज जी.टाल गये और कह दिया कि जिसे जरूरत थी वह ले गया। महाराज जी उस आदमी को घड़ी उठाते समय देख चुके थे । यह बात सुनकर वह लज्जित हुआ होगा और किसी समय चुपचाप घड़ी वापिस रख गया । जब हमने अगले दिन घड़ी रखी देखी तो महाराज जी से पुनः पूछा कि यह कहाँ से आ गई ? लेकिन महाराज जी फिर टाल गये और कहने लगे कि उसकी जरूरत पूरी हो गई होगी, अतः वापिस रख गया होगा। बार-बार पूछने पर भी उन्होंने उसका नाम नहीं बताया । ऐसी है आपकी क्षमाशीलता । जो व्यक्ति आत्मपश्चात्ताप कर चुका हो उसे क्षमादान ही देना चाहिये । महाराजश्री सभी व्यक्तियों को उनकी सामर्थ्य के अनुसार धर्म-कार्य में लगाये रखते हैं और उसी के अनुसार संयम, त्याग के व्रत दिलवाते हैं। मुझे याद है जब आज से लगभग २५ वर्ष पहले अष्टमी चौदस को दर्शनार्थीगण महाराज जी के पास व्रत, उपवास के नियम लेने आये थे तब एक भक्त ने मेरी ओर संकेत कर कहा कि महाराज जी इन्हें भी कुछ व्रत दे दें। उस समय महाराज जी ने मेरी सामर्थ्य को देखते हुए हँसते हुए कहा था--आज तुम एक रोटी ज्यादा खाना ! __ वस्तुतः महाराज जी क्षमा, दया, ज्ञान, त्याग की मूर्ति हैं और धर्मोपदेश द्वारा जन-मानस का कल्याण कर रहे हैं । मैं भी शायद आपकी चरणधूलि से अपना कल्याण और आपकी प्रेरणा से कुछ सामाजिक कार्य कर सकें। आपके चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम । भगवान् जिनेन्द्र देव से प्रार्थना है कि आप चिरायु हों और हम सबको कल्याण का पथ दिखाते रहें। लोक कल्याणकारी साधक श्री सुधीरकुमार जैन (कूचा सेठ) परमपूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज के पावन दर्शन अथवा स्मरण मात्र से ही मन पवित्र हो जाता है। आचार्यश्री जैन सन्त परम्परा की अमूल्य निधि हैं । आपने अपना जीवन सतत् साधना एवं जैनधर्म, दर्शन और संस्कृति की सेवा में समर्पित कर दिया है। लोककल्याण ही आपकी साधना का लक्ष्य है। आपकी दीर्घ साधना का हृदय से अभिनन्दन करते हुए मैं पावन श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन करता हूँ। कालजयी व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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