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अपनेपन का भाव स्पष्ट झलकता है । अपनी लगाई ज्ञानबेल को इस प्रकार देखकर वे प्रमुदित थे। आज वह गुरुकुल अपने अधूरे सपने देखकर अभावों के थपेड़े सहता हुआ विराम ले चुका है लेकिन ये स्मृतियां आज जब आचार्यरत्न का एक शानदार अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है तब बरबस हमारी याद को उससे जोड़ देती हैं।
आचार्यश्री ने एक अर्द्धशताब्दी श्रमण तपस्वी और चरित्रतपोनिधि के रूप में पूरी कर श्रमण साधना को आत्मसात् किया है और ज्ञान-गंगा को सम्पूर्ण भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक अविरल और अविकल प्रवाहित कर मुमुक्षुओं के तृषित और भटके मन को शान्ति और सुख के शीतल जल से अभिसिक्त किया है । आप अथाह ज्ञान के सागर, कन्नड़, संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती आदि विविध भाषाओं के मर्मज्ञ, चारित्र में अद्वितीय, सैकड़ों उपसों से तपे कंचन जैसे जीवन के अधिपति, आचार्यों में शिरोमणि हैं । आचार्यश्री के जीवन में पंचमहाव्रत तो उच्छवास की भांति घुल गये हैं । कठोर श्रमण साधना की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए आप उत्तरोत्तर जिस आध्यात्मिक ऊँचाई पर आसीन हो चुके हैं वह विरल एवं विशिष्ट है। आपकी वीतरागी तेजस्विता ने दिगम्बर मुनि की सिंह वृत्ति और इयत्ता को सिरमौर कर दिया है। कौन जानता था कि कोथलीपुर का बालक बालगौड़ा एक दिन आचार्यरत्न की अप्रतिम आभा से लोक को उद्भासित कर, सत्य और अहिंसा के प्रशस्त मार्ग का संधान कर और दिशाहारा मानव का दिक्सूचक बनकर इस युग को शान्त और आत्मोदय की करवट लेने के लिए उत्प्रेरित करेगा । विश्वबन्धुत्व, समता और अहिंसा धर्म के पालक आचार्यश्री की वीतराग साधना के सौ वर्ष पूरे होने पर हम एक 'श्रमण शताब्दी समारोह' मनायें जिसमें एक दूसरे 'श्रमण अभिनन्दन ग्रन्थ' का विमोचन हो । इस परम अभिलषित भावना के साथ महान् सद्गुरु को अपनी विनम्र प्रणामाञ्जलि निवेदित करके इन भूली बिसरी यादों के प्रसूनों को उनकी पूजा में अर्ध्य स्वरूप चढ़ाता हुआ विराम लेता हूं।
धर्मचक्र प्रवर्तक
-श्री सलेकचन्द जैन
(कूचा सेठ)
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज पदयात्रा करते हुए बड़ौत शहर के निकट कोताना के श्री दिगम्बर जैन मन्दिर जी में भी पधारे थे। प्रबन्धकों ने उनके रात्रि विश्राम की व्यवस्था शास्त्रभंडार के कक्ष में की थी। अगले दिन प्राःतकाल के समय आचार्य श्री ने श्रावकों की धर्मसभा को संबोधित करते हुए श्रुत साहित्य की सुरक्षा, संरक्षण एवं अध्ययन का विशेष परामर्श दिया था। श्री मन्दिर जी के शास्त्रभंडार और अनेक हस्तलिखित पांडुलिपियों का अवलोकन करने के उपरान्त उन्होंने स्थानीय श्रावकों से कहा था कि "आप सभी भाग्यशाली हैं क्योंकि आपके यहाँ धर्मग्रन्थों को विशेष रूप से सुरक्षित रखा गया है। नई पीढ़ी का दायित्व है कि वह भी श्रुत साहित्य का अध्ययन करे और अपनी सांस्कृतिक सम्पदा को प्राण देकर भी सुरक्षित रखे।"
मन्दिर जी के भव्य परिवेश को देख कर महाराज जी ने यह भविष्यवाणी भी कर दी थी कि निकट भविष्य में यहाँ विशेष चमत्कार होगा और पृथ्वी के गर्भ से अतिशय सम्पन्न मूर्तियाँ प्राप्त होंगी। वस्तुत: कोताना एक ऐसे स्थान पर है जो उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा को जोड़ता है। विगत वर्षों में हाँसी (हरियाणा) से प्राप्त जैन मूर्तियों को देखकर ऐसा लगता है कि शायद हमारे पूर्वजों ने विदेशी आक्रमणकारियों से जिनबिम्बों की रक्षा करने के लिए उन्हें यहाँ की धरती में सुरक्षा की दृष्टि से गाड़ दिया होगा।
आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज समाज की सुप्त शक्ति को जगाने वाले महान् साधु-श्रेष्ठ हैं। धर्मस्थानों की रक्षा और तीर्थकर भगवान महावीर की वाणी के प्रचार-प्रसार में उनका जीवन व्यतीत हुआ है। उनकी दीर्घ साधना एवं तपस्वी जीवन के प्रति मैं हार्दिक श्रद्धा अर्पित करता हूं । भगवान् श्री जिनेन्द्र देव से प्रार्थना है कि वे उन्हें दीर्घ आयु दें जिससे उनके द्वारा प्रवर्तित धर्मचक्र का सभी लाभ उठा सकें।
आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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