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उनके अन्तःकरण में विद्यमान है, ऐसे व्यक्ति की साधुता के प्रति मेरे अन्तःकरण में महान् आदर भाव है।"
इटली के एक बंधु अपनी पत्नी सहित मेरे साथ देहली की जैन धर्मशाला, दरीबा में पहुंचे। आचार्यश्री के दर्शन से वे बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने प्रत्येक रविवार को मांस-त्याग का नियम लिया और कहा कि हम इटली पहुंचने पर मांस त्याग के बारे में पूर्ण. प्रयत्न करेंगे।
एक बार लाल मंदिर, देहली में एक डच महिला को महाराज के समीप देखा । उसके साथ लका द्वीप का एक बड़ा व्यापारी भी था। वे दोनों पूज्यश्री के परम भक्त थे । डच महिला ने कहा था कि मैं इन महापुरुष को प्रतिदिन प्रणाम करती हूं। इनका फोटो मेरे पास है। इनसे मुझे महान् शांति एवं प्रेरणा मिलती है ।
उस बहन को महाराज ने णमोकार मंत्र सिखा दिया था जिसे उसने इंगलिश ट्यून (अंग्रेजी स्वर पद्धति) में सुनाया था। पूज्य श्री के आदेश पर मैंने उसे अंग्रेजी में 'एसो पंच णमोयारो सत्व पावप्प णासणो' आदि गाथा अंग्रेजी अक्षरों में लिखकर सिखायी थी।
कम्बोडिया का तरुण बौद्ध साधु नालन्दा होते हुए महाराज श्री के समीप आया। महाराज की वाणी और तेजोमय व्यक्तित्व से उसे अपार आनन्द आया। उसने विनयपूर्वक प्रार्थना की कि आप हमारे देश कम्बोडिया चलिये, कलकत्ता से ब्रह्म देश होते हुए बैंकाक पहुंचने के पश्चात् कम्बोडिया के देशवासियों को आपका दर्शन प्राप्त होगा।
एक ज्योतिषी ने बताया कि पूज्य श्री की ज्योतिष की दृष्टि से अद्भुत कुंडली है। इनके ग्रह शहंशाह अकबर व राष्ट्रपिता गांधी के समान हैं। प्रमुख धनी और राजनेता इनसे अधिक प्रभावित होते हैं । ध्यान, अध्ययन और परोपकार में ये सदैव तल्लीन रहते हैं। ये महान आत्मचिंतक योगी हैं । इनकी उच्च समाधि होगी ।
हिन्दू धर्म के प्रगाढ़ श्रद्धालु सेठ राजा जुगल किशोर बिरला को महाराज में प्रगाढ़ श्रद्धा थी। उनके कमरे में महाराजश्री की फोटो थी । वे उसे सदा प्रणाम करते थे । वे अनेक बार दिल्ली में आकर महाराजश्री का दर्शन करते थे। एक समय वे स्वयं उनका कमंडल हाथ में लेकर उनके साथ बिरला भवन नई दिल्ली गये थे जहाँ गुरुदेव के प्रभावशाली धर्मोपदेश को बिरला मंदिर में एकत्रित बहुजन समाज ने सुनकर महान् हर्ष व्यक्त किया था।
भारत के साधुतुल्य निर्मल चरित्र वाले चिरस्मरणीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री पूज्य श्री के चरणों में हजारों व्यक्तियों के बीच २-३ घटे तक बैठे रहे थे। उन्होंने आचार्य श्री से यह आशीर्वाद मांगा था कि मैं भी आपकी तरह परमहंस संन्यासी बन जाऊँ। जिस समय गुरुदेव ने अपने को प्रणाम करते हुए भारत देश के प्रधानमंत्री श्री शास्त्री के मस्तक पर आशीर्वाद देते हुए पीछी रखी थी, उस समय पुण्य-मूर्ति शास्त्री का मुखमंडल प्रसन्न हो अपार आनन्द का भाव प्रकट कर रहा था। यह बात उनके गुरुदेव के साथ खींचे महत्त्वपूर्ण चित्र में पूर्णतया अंकित है।
दिव्य प्रभाव :-आचार्यश्री विशिष्ट सिद्धियों से समलंकृत हैं। कोल्हापुर के प्रमुख व्यापारी श्री गणपति रोटे ने कहा था"जब पूज्य श्री कोल्हापुर से १६ मील की दूरी पर मान ग्राम में पहुंचे, तब उस गांव में हैजे का भयंकर प्रकोप था। आचार्य श्री के कमंडलु के पानी द्वारा क्षण भर में रोगी व्यक्ति निरोगी हो जाता था। बड़े-बड़े डाक्टर भी इनके दर्शनार्थ आते थे।" ।
दिल्ली में आचार्य-भक्त श्री कैलाशचन्द जैन, राजा टायज वालों, ने लिखा था "महाराज सदैव ही शास्त्र स्वाध्याय, उच्च तपश्चर्या तथा जिनेन्द्र की वाणी द्वारा जीवों का कल्याण करने में दत्त-चित्त रहते हैं। उनमें सबसे बड़ी बात यह है कि क्रोध-क्षोभ आदि के कारणों के आने पर भी वे शान्त और गंभीर रहते हैं। जिसने इनका उपदेश सुना है, वह सदा के लिये इनके चरणों का दास हो गया है।"
बंगलौर हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज श्री तुकोल ने लिखा है कि वे १२ अप्रैल १९७२ की महावीर-निर्वाण-महोत्सव की उस बैठक में दिल्ली में उपस्थित थे जो पालियामेंट हाउस में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुई थी। उस बैठक में आपने प्रधानमत्री इंदिराजी को आशीर्वाद देते हुए अत्यन्त संतुलित भाषा में महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये थे ।
. निर्भय एवं सिद्ध साधुराज :-आचार्य श्री दक्षिण से दिल्ली की ओर आ रहे थे कि उज्जैन के समीप एक भयंकर सर्प ने इन्हें काटा था। उसके डेढ़ दांत टूट गये थे। इन्होंने कोई दवा न लगाकर अपने कमंडलु का जल उस जगह पर डाल दिया जहां सर्प ने दंश ८८
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रंथ
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