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साधरत्न प्राचार्य देशभषण महाराज
जैन दिवाकर
वर्तमान युग में मानव-समाज सांसारिक भोगों के जाल में फंसा है । वह यह नहीं सोचता कि देव-दुर्लभ मानव जीवन के माध्यम से परमात्मा के रूप में आत्मा का पूर्ण विकास हो सकता है । यह जीव बाहरी पदार्थों में सुख और शांति की सामग्री खोजा करता है। इसे यह पता नहीं है कि यदि वह अंतर्मुखी बन जाय तो स्वयं अपनी आत्मा को भी अक्षय आनन्द के महासागररूप में अनुभव करेगा।
आज विवेकशील मनुष्य खोजने पर भी नहीं मिल पाता। कहते हैं कि ग्रीस का एक विद्वान् दार्शनिक दोपहर के समय लालटेन लेकर जा रहा था । एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि सूरज का प्रकाश होते हुए भी आपने लालटेन किस लिये ले रखी है, तब उन्होंने कहा कि मैं मनुष्य को खोज रहा हूं। ऐसे इंसान को देख रहा हूं जिसमें मानवता हो।
वस्तुतः उच्च विचार और उन्नत चरित्र वाले मनस्वी महापुरुष इस संसार में चितामणिरत्न के समान दुर्लभ है। फिर भी, सौभाग्य से कुछ पुण्यशाली महापुरुष आज भी हैं, जो पवित्र श्रद्धा, विशुद्ध ज्ञान और निर्मल आचरण द्वारा अपने जीवन को समलंकृत कर रहे
ऐसी विशुद्ध आत्माओं को वर्तमान युग में प्रेरणा प्रदान करने वाले महामना चारित्रचक्रवर्ती, श्रमण-शिरोमणि आचार्य शांतिसागर महाराज हो गये हैं। उनके दिवंगत होने के उपरांत उन साधुराज के विषय में राष्ट्रपति डा० राधाकृष्णन ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए रेडियो-प्रसारण में कहा था "ज्ञान और आत्मत्याग को चर्चा करना आसान है, पर उन पर अमल करना कठिन है। आचार्य शांतिसागर जी ऐसे ही सन्त थे, जिनके आत्मत्याग के सहारे यह संसार जीवित है । आचार्य श्री बहुत बड़े सन्त थे, जिनके निधन से भारत को अपार क्षति पहुंची है। जनता को चाहिये कि वह आचार्य शांतिसागर महाराज के आदर्शों को अपने जीवन में व्यावहारिक रूप दे।"
इन साधराज की जन्मभूमि के समीप कोथली (जिला बेलगांव) में आचार्य रत्न देशभूषण महाराज एक महान् सन्त उत्पन्न हुए, जिनके जीवन पर आचार्य शांतिसागर महाराज का गहरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। आचार्य देशभूषण महाराज के संबंध में मैंने
"श्रमणराज आचार्य देशभूषण महाराज" ग्रन्थ बनाया है जिसका प्रकाशन दिल्ली से हुआ था। उनके जीवन में साधुता, सरलता और . सहदयता का सुन्दर समन्वय स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इनके मंगल जीवन के विषय में कवि के ये शब्द चरितार्थ होते हैं
गंगा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तथा।
पापं तापं च दैन्यं च हन्ति सन्तो महाशयाः ॥ गंगा के शीतल जल में स्नान करने वाला भक्त मानता है कि इससे उसका पाप नष्ट होता है, चन्द्रमा की किरणों का आश्रय देने वाले व्यक्ति का संताप दूर होता है, कल्पवृक्ष के नीचे बैठने वाल व्यक्ति को मनोवांछित वस्तु प्राप्त होने से उसकी दीनता दूर होती है, किन्तु विशाल हृदय वाले महापुरुषों की शरण में आने वाले का पाप क्षय होता है, संताप दूर होता है, और व्यक्ति समद्धि का अधीश्वर बनता है। यहां एकत्र सभी बातों का सद्भाव पाया जाता है ।
जैन साधू, जैन शास्त्र और वीतराग जिनेन्द्र के द्वारा समस्त प्राणियों का कल्याण होता है इसलिये इन्हें सर्वकल्याणकारी गया है। इनकी दष्टि सीमित भक्तों की मर्यादा से परे, यहां तक कि शत्रुओं पर भी कल्याणदायिनी रहती है। मेरा आचार्यरन देशभषण महाराज का करीब ५० वर्ष पुराना निकट परिचय है। उनकी रसवती, मनमोहिनी, मधुरवाणी जैन-अजैन सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है।
प्रभावक व्यक्तित्व :-१९६४ में प्राच्य विश्व अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन नई दिल्ली में हआ था। उसमें मैंने अपने अमेरिकन मित्र डा० लथर कोपलेंड के साथ भाग लिया था । एक दिन मेरे साथ डा० कोपलेंड आचार्य देशभूषण महाराज के दर्शनार्थ आये। उन्हें देखकर वे अत्यंत प्रभावित हुए । जनवरी की भीषण शीत में पूर्ण स्वस्थ, प्रसन्नचित्त, अपनी धार्मिक क्रियाओं के परिपालन में तत्पर, दिगम्बर आचार्य का दर्शन कर महान् आनन्द का अनुभव किया। अमेरिका से उन्होंने मुझे एक पत्र में लिखा था-"आचार्य श्री की स्मृति
* कालजयी व्यक्तित्व
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