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________________ दूसरे के मन को जीता जा सकता है, इस विषय पर प्रकाश डाला। फलस्वरूप सभी बन्दियों ने एक स्वर से आचार्य श्री के बताये गये सिद्धान्तों एवं मार्ग पर चलने का आश्वासन दिया एवं उन्हें पुनः कारागृह पर पधारकर ऐसे सच्चे रास्तों पर चलने की दिशा बताने हेतु निवेदन किया। मैं भी यह समझता हूं एवं निवेदन करूंगा कि यदि ऐसे प्रवचन समय-समय पर आयोजित किये जाएँ तो बन्दियों के विचार एवं जीवन में बहुत कुछ परिवर्तन हो सकता है क्योंकि आचार्यों द्वारा बताया गया रास्ता ही साकार होता है। मैं आचार्य रत्न मुनि श्री देशभूषण जी के प्रति अपनी ओर से, विभाग की ओर से एवं बन्दियों की ओर से आभार प्रगट करता हूं एवं उनके जीवन की दीवायु के लिए ईश्वर से कामना करता हूं। दामोदर लाल अग्रवाल वरिष्ठ लेखाधिकारी, कारागार विभाग, जयपुर (३) बन्दियों का आभार-पत्र हम समस्त बन्दीगण आचार्य रत्न मुनि श्री देशभूषण जी महाराज के प्रति सम्मान एवं आर हार्दिक आभार प्रकट करते हैं कि उन्होंने १० जुलाई १९८२ को इस कारागृह पर पधार कर जो प्रवचन दिये, उन सब पर हमने विचार किया एवं विचार करने के फलस्वरूप यही पाया गया कि महाराज का दिखाया रास्ता मानव व स्वयं के कल्याण के प्रति सर्वोपरि है । हम सब यह प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक हम जेल में हैं व जेल से छूटने के पश्चात् मुनि महाराज द्वारा दी गई शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए निम्न बातें अपने जीवन में उतारेंगे : (१) अहिंसा के मार्ग को जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे। (२) हम अपने आपको सत्यता एवं निष्ठा से कार्य करने हेतु प्रस्तुत करेंगे । (३) काम, क्रोध, लोभ, मोह, बैर भाव आदि कुरीतियों से दूर रहेंगे। (४) आपस में अपने साथी भाइयों से भाई-चारे का व्यवहार करेंगे । (५) किये हुए कर्मों पर संध्या काल में निद्रा लेने से पूर्व उस पर विवेचन कर अपने आपको सुधारने का प्रयास करते रहेंगे। हम सब पुनः आभार प्रकट करते हुए आचार्यरत्न मुनि श्री देशभूषण जी की दीर्वायु के लिये कामना करते हैं। हम सब यह आशा भी करते हैं कि आचार्य मुनि अपने जयपुर प्रवास के दौरान फिर हमें अपने प्रवचनों से लाभान्वित करने का सौभाग्य प्रदान करेंगे । भवदीय अनेक बन्दियों के हस्ताक्षर आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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