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________________ बन्दियों की भावना डॉ० रमेशचन्द्र गुप्त जयपुर-प्रवास में महाराज श्री की समाज-सुधार के प्रति अद्वितीय सेवाओं से प्रभावित हो कर जयपुर केन्द्रीय कारागार के अधीक्षक एवं पदाधिकारियों ने दो या तीन बार महाराज श्री को आमंत्रित करके कैदियों के मध्य उनके विशेष मंगल-प्रवचन कराये थे। महाराज श्री की दिगम्बरी मुद्रा, धार्मिक उपदेश इत्यादि से प्रभावित हो कर कैदियों ने अपनी अपराध-प्रवृत्तियों को छोड़ने और अनेक कैदियों ने नियम इत्यादि लेकर अपने को सुधारने का संकल्प किया। महाराज श्री की पवित्र वाणी उनके अन्तरमन को छू गयी थी। इसीलिए महाराज श्री के दर्शन को वे लालायित रहा करते थे। महाराज श्री भी उनके विकास का निरन्तर ध्यान रखा करते थे और समय-समय पर अनेकानेक साहित्य जेल में भिजवाया करते थे और श्रावकों से अनुरोध किया करते थे कि कैदियों के बन्दी जीवन के उपरान्त उन्हें समाज में प्रतिष्ठित स्थान दिया जाए। इस सब का यह परिणाम हुआ कि महाराज श्री ने जब जयपुर से विहार किया तब कैदियों ने भी उन्हें भरे हुए दिल से विदा किया और अपने जीवन को सुधारने का पुनः संकल्प किया । आचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज जिस समय बेलगांव में चातुर्मास कर रहे थे, उस समय भी वहां के कारागार में कैदियों के सुधार की भावना से उनको वहां आमंत्रित किया गया था। कैदियों के मन में महाराज श्री के दर्शन से एक अद्भुत क्रान्ति आई थी। उन्होंने जीवन के सत्य को समझते हुए अपने अपराधों को महाराज श्री के समक्ष स्वीकार किया था और उनसे आवश्यक प्रायश्चित्त मांगा था। महाराज श्री ने एक समाजसुधारक के रूप में उनके छोटे-छोटे अपराधों की भावना को उन्मूलित करने के लिए आवश्यक परामर्श दिया था और कैदियों ने उनके परामर्श को जीवन में भी उतारा था। वहां के जेलर ने मौखिक रूप से चर्चा करते हुए कहा था कि महाराज श्री के आने से बंदियों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। जेल के अन्दर उनके कलह एवं उत्पात बड़ी संख्या में समाप्त हो गए थे। अनेकानेक कैदी अपने मन की व्यथा को लेकर महाराज श्री के पास आते थे और उनके आवश्यक मार्ग-दर्शन की अपेक्षा किया करते थे। जेलर साहब का प्रायः यह कथन था कि आचार्य श्री द्वारा जेल में मंगल-प्रवचन के उपरान्त कैदियों में अनुशासन इत्यादि के भाव उत्पन्न हो गये थे और वे अपने किए पर पछता कर जीवन को सुधारने लगे थे। इस सम्बन्ध में हमें केन्द्रीय कारागार, जयपुर, के अधीक्षक, वरिष्ठ लेखाधिकारी तथा कुछ बन्दियों के आभार पत्र प्राप्त हुए हैं, जिन्हें अविकल रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। (१) कार्यालय अधीक्षक का आभार पत्र हम आभार प्रगट करते हैं कि आचार्यरत्न मुनि श्री देशभूषण जी महाराज ने १० जुलाई १९८२ को इस कारागृह पर पधार कर कारागृह के कर्मचारियों एवं उसकी परिधि में आम जनता को अपने प्रवचनों से लाभ पहुंचाया। उन्होंने बताया कि जीवन के उतार-चढ़ाव मे आने वाली कटिन परिस्थितियों से मानव किस प्रकार जूझ सकता है, किस प्रकार शान्ति से अहिंसा से मन को एकाग्र कर सत्यता से परे न जाकर और कठिन परिश्रम से अपने आपको उबार सकता है। हम सबने इस सीख को अपने जीवन में उतारने हेतु अपने को पाबन्द करने का वचन महाराज श्री को दिया है । हम उनकी दीर्घायु के लिये कामना करते हैं। रायसिंह यादव अधीक्षक, केन्द्रीय कारागृह, जयपुर (२) वरिष्ठ लेखाधिकारी का आभार पत्र केन्द्रिय कारागृह जयपुर के वन्दियों की हादिक इच्छा को आचार्यरत्न मुनि श्री देशभूषण जी महाराज ने स्वीकार करते हुए दिनांक १०-७-८२ को कारागृह पर पधार कर अपने प्रवचन में अहिंसा ही पावन जीवन का सार है पर जोर दिया व बन्दियों को बन्दीकाल एवं इसके पश्चात् भी अहिंसा के सिद्धान्तों पर चलने, सत्यता, निष्ठा परिश्रम से कार्य करते रहने व समाज में रह कर किस प्रकार कालजयी व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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