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________________ भारत-गौरव ब्र० सुनीता शास्त्री (मंत्री श्री स्याद्वाद शिक्षण महिला परिषद्, सोनागिरि) भारत वसुन्धरा पर चिरकाल से अनेकों महर्षि-तपस्वी तपस्या करते आ रहे हैं। इसी से इस भूमि का कण-कण पवित्र हो गया है। आदीश्वर प्रभ से लेकर सन्मति पर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों के अवतार का सौभाग्य भी इसी वसुन्धरा को प्राप्त हुआ था। राम हनुमान जैसे चरम शरीरी हजारों महापुरुष इसी वसुन्धरा की देन हैं । यहाँ समय-समय पर परम पूज्य आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी से लेकर आचार्य शान्ति सागर जी, आचार्य शान्ति सागर जी छानी, आचार्य आदिसागर जी महाराज जैसे परम तपस्वी अनेकों आचार्य मनिराज अपने तप एवं सम्यग्ज्ञान के प्रभाव से जन-जन के हृदय में स्यावाद ज्ञान-ज्योति प्रज्ज्वलित कर गये हैं। इसी संत-परम्परा में भारत-गौरव, सम्यक्त्व चड़ामणि, धर्म दिवाकर, विश्ववंदनीय आचार्य रत्न श्री १०८ देशभूषण जी महाराज हैं, जिनकी गौरव-गाथा अखिल विश्व में वाय के समान व्याप्त है। आपने वर्तमान में जैन समाज ही नहीं, प्राणी मात्र को जो सन्मार्ग दिखाया है वह परम प्रशंसनीय है। एक और सम्यक्दर्शन के प्रतीक अनेकों जिनबिम्बों की स्थापना, दूसरी ओर सम्यग्ज्ञान के प्रतीक हजारों ग्रन्थों का अनुवाद,रच ना एवं प्रकाशन, तथा अनेकों विद्यालय एवं पाठशालाओं का शुभारम्भ तो आपने किया ही है, इसी शृखला में हजारों भव्य आत्माओं को व्रती बनाकर, जैनेश्वरी दीक्षा देकर, सम्यक्चारित्र का बिगुल अखिल भारत में बजा दिया है । मुझे आपके प्रथम दर्शन जयपुर में हुए । वात्सल्य से युक्त एवं सहानुभूति व ममतामय झलक देखते ही मन आनन्द विभोर हो. मया। आपने उसी समय पचंकल्याणक प्रतिष्ठा चूलगिरि के ऊपर एवं नीचे दोनों जगह कराई। प्रतिष्ठा के समय भयंकर तूफान आया परन्त आपके आशीर्वाद से किसी भी मानव को तनिक भी कष्ट नहीं हुआ। ये है आपकी तपस्या का प्रभाव । जयपुर पर्युषण पर्व में ज्ञात हआ कि महाराज श्री का अभिनन्दन ग्रन्थ देहली समाज की ओर से प्रकाशित किया जा रहा है। यह महान् गौरव की बात है। वास्तव में आचार्य श्री के उपकारों का बदला तो अनेकों अभिनन्दन ग्रन्थों से भी नहीं चुकाया जा सकता। हम यही कामना करते हैं कि परम पज्य आचार्य श्री चिरकाल तक जीवित रहकर हम सभी को सन्मार्ग दिखाते हुए भारत वसुन्धरा को गौरवान्वित करते रहें। -- -- जनकल्याणकारी संत ब्र० धर्मचन्द जी शास्त्री (संघस्थ) (प्रचार मंत्री, अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन युवा परिषद्) हमारा देश संतों की तपोभूमि रहा है । संतों के कारण ही यहाँ की मिट्टी के कण-कण में आध्यात्मिकता की सुगन्ध व्याप्त है। परमपूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज भी ऐसे ही संत हैं, जिन्होंने असंख्य जनों को आध्यात्मिकता का पावन संदेश सुनाया है। आचार्य श्री केवल पूर्व, पश्चिम, उत्तर या दक्षिण के ही नहीं, वरन् सबके समान रूप से हैं, और उन्हें सभी भाषाओं से प्यार है। आपकी मातृभाषा कन्नड़ होते हुए भी आप सरल सुबोध हिन्दी भाषा में प्रवचन करते हैं । आपका तप, त्याग, संयम, निष्ठा हर भारतीय के लिये महान् गौरव की बात है। हमें गर्व है कि हमें ऐसे जनकल्याणकारी आचार्य श्री का सामीप्य एवं संरक्षण प्राप्त हुआ। आपके द्वारा प्रेरित अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन युवा परिषद् सन् १९७७ के स्थापना वर्ष से निरन्तर जिनागम के अनुसार अग्रसर है। मैं अभिनन्दन की इस बेला में आचार्यश्री की दीर्घायु की कामना करता हूं तथा श्री चरणों में बारम्बार नमन करता हूं। --0-- आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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