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________________ विश्व विभूति मुनि श्री आर्यनन्दी जी विखविभूति आ वार्यरत्न को कौन नहीं जानता ? वे वात्सल्य की अद्वितीय मूर्ति हैं। सन् १९७० में श्री अतिशय क्षेत्र बाहुबली कुम्भोज के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आपके मंगल दर्शन पाकर मैं आनन्दविभोर हुआ। उस अवसर पर आगत लाखों श्रावक-श्राविकाओं ने पूज्य गुरुदेव समन्तभद्र जी महाराज को उनके असीम धर्मोद्धारक और समाजकल्याणकारी परोपकारों को लक्षित करते हुए कृतज्ञतापूर्वक 'आचार्य' पद देना चाहा, किन्तु पूज्य गुरुदेव ने आचार्य पद स्वीकार न करते हुए कहा कि "हम तो मुनि . पद के भी पात्र नहीं, फिर आचार्य पद कहां? हमारे आचार्य श्री तो श्री १०८ देशभूषण जी महाराज (जो पास में ही विराजमान थे) ही हैं।" - आचार्य श्री देशभूषण जी पहले ही से आचार्य थे और इनकी वात्सल्यपूर्ण छत्रछाया में अनेक त्यागी, मुनि, आपिका, क्षुल्लक, क्षल्लिका आदि ध्यानाध्ययन से अपना कल्याण साधते हैं । दक्षिण में इतना बड़ा संघ आचार्य श्री का ही है। विश्वधर्म के प्रसारक एवं प्रचारक एलाचार्य श्री १०८ विद्यानन्द जी मुनिराज एवं महान् संस्कृत विद्वान् उपाध्याय मुनिराज श्री १०८ कुलभूषण जी महाराज आदि आपके शिष्योत्तम हैं । कोथली के पहाड़ पर नूतन अतिशय क्षेत्र शांतिगिरि का निर्माण, गुरुकुल स्थापना, नूतन मन्दिर, जिनेन्द्र प्रतिमाएं आदि आपने ही स्थापित करवाई। कन्नड़ भाषा के अनेक ग्रन्थ हिन्दी में अनूदित किए। भारत भर में विहार करके धर्म प्रभावना की। कहां तक वर्णन करें, हम अल्पज्ञ वर्णन करने में असमर्थ हैं। "सब धरती कागद करूं, लेखनी सब बनराय। सात समुद की मसि करू, गुरु गुन लिखा न जाय।" बाहुबली (कुम्भोज) में प्रतिष्ठा के अवसर पर भारतीय तीर्थ क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र - कमेटी की बैठक सन् १९७० में पूज्य श्री १०८ गुरुदेव समन्तभद्र जी महाराज एवं आचार्य रत्न श्री १०८ देशभूषण जी महाराज के सान्निध्य में हुई । तब एक कोटि ध्र व निधि में दान संकलन का प्रस्ताव पारित हुआ था और हमें यह भार सौंपा गया था। इन्हीं दोनों आचार्यों के आदेश एवं आशीर्वाद से समाज ने उदारतापूर्वक दान दिया और हम सफल हुए। वे सब भाई-बहन पुण्यभागी एवं धन्यवाद के पात्र हैं। तात्पर्य यह कि तीर्थ रक्षा कोटि फंड के संकलन में आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज का भी आशीर्वाद था और है। यह उल्लेखनीय है। ऐसे धर्मोद्धारक, समाज उद्धारक, आचार्यरत्न, वात्सल्य मूर्ति, दयासिंधु, परमोपकारी श्री १०८ देशभूषण जी महाराज की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की प्रार्थना श्री जिनेन्द्र प्रभु के चरणों में करते हुए आचार्यरत्न के चरण-कमलों में स्वविनय आचार्यभक्ति से शतशः प्रणाम । नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, नमोऽस्तु पूर्वक यह संस्मरण भाव पुष्पांजलि सादर समर्पित है। --0-- उच्च कोटि के आचार्य मुनि श्री पार्श्वकीर्ति जो आचार्य देशभूषण जी महाराज प्रथम श्रेणी के साधुओं में उच्च कोटि के आचार्य हैं। आप पचास साल से दीक्षित हैं। आपको हमने दिल्ली में ब्रह्मचारी व्रत में आहार दान दिया और आपका शुभ आशीर्वाद प्राप्त करने से हमारा बहुत उद्धार हुआ। आप दीर्घायु हों । * कालजयी व्यक्तित्व m Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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