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________________ जैन शासन के उज्ज्वल नक्षत्र श्री गिरीश मुनि जी हर वर्ष पूर्व मेरे परमोपकारी पूज्य राष्ट्र से बनारस (काशी) पधारे करीब ३२ वर्ष पूर्व मेरे परमोपकारी पूज्य तपस्वी श्री जगजीवन जी महाराज अपने संत-शिष्य परमदार्शनिक पूज्य जयंतिलाल जी महाराज को नव्य न्यायादि दर्शन पढ़ाने के लिए सौराष्ट्र से बनारस (काशी) पधारे थे। मैं उनकी सेवा में वैरागी के रूप में अध्ययन कर रहा था। उस समय पूज्य आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज ने बनारस में दिगम्बर जैन मन्दिर धर्मशाला में एक धर्मयज्ञ का आयोजन करवाया था। मुझे धर्मयज्ञ देखने की उत्सुकता थी, अत: मैं तुरंत ही आचार्य श्री के दर्शनार्थ चला गया। यह मेरा आचार्म श्री का प्रथम दर्शन था। दीक्षित होने के बाद जब पूर्ण भारत में पूज्य गुरुदेव के साथ मैं विचरण कर रहा था, तब कलकत्ता नगर में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज का प्रथम पदार्पण हुआ था। उस समय दिगम्बर मुनि के रूप में आपका बंगाल प्रदेश में प्रथम प्रवेश था। आप बेलगछीया जैन मंदिर में ससंघ विराजमान थे। आपके सान्निध्य में एक जैन श्रमण सम्मेलन का आयोजन भी हुआ था। विशाल पाण्डाल में आयोजित उस विराट् सम्मेलन में मैं भी पूज्य गुरुदेव जयन्त मुनि जी महाराज के साथ गया था। उस समय चतुर्विध संघ के साथ तीनों संप्रदायों के मुनियों का एक साथ दर्शन-मिलन और प्रवचनादि सुनने का मुझे प्रथम ही सौभाग्य मिला था। उस मिलन ने मुझे संकीर्ण विचारों से मुक्त कर विचारों की विराटता की ओर प्रेरित किया। मुझ अकिंचन को आचार्यरत्न देशभूषण जी के दर्शन का यह दूसरा अवसर मिला था । __ शत्रुजय की यात्रा के समय आप सौराष्ट्र में पधारे थे । हम उस समय बाबरा ग्राम में थे। आप श्री संघ के साथ भावनगर रोड से आगे पधार रहे थे । दिगम्बर मुनियों का संघ जा रहा है-यह समाचार सुनते ही हम धर्मस्थानक से तुरंत ही निकल पड़े और सड़क पर आये। वहां हमें एक मुनि जी के दर्शन हुए। वे कुछ शिक्षाएँ दे रहे थे। हमने पूछा कि आचार्य श्री कहाँ हैं ? लोगों ने कहा वे तो आगे निकल गये हैं । मैंने कहा आप आगे जाकर पूज्य श्री को समाचार दें कि हम दर्शनार्थ आ रहे हैं । आचार्यदेव खबर सुनते ही हमारी प्रतीक्षा करते हुए रुक गए। मैं विहार करता हुआ जल्दी वहाँ पहुँचा और बहुत साल के बाद आचार्य श्री का तीसरी बार दर्शन किया। आचार्य श्री ने मुझे काष्ठ के आसन पर बिठाकर प्रेम से सम्मानित किया। परिचयवार्तालाप से दोनों ने अधिक आनन्द पाया। समय सन्ध्या का था। अत: वे आगे पधार गये और मैं लौट आया । आप सचमुच भारत देश के भूषण ही हैं। यथा नाम तथा गुण-जैसा नाम वैसा ही सद्गुण है। आपकी ज्ञानमुद्रा, ध्यानमुद्रा और वात्सल्य मुद्रा का संस्मरण हमें अनेकों बार संयम-ध्यान की अनूठी प्रेरणा देता रहा है। आप ज्ञान के दीपक हैं, संयम के सूर्य हैं और ध्यान के मेरु हैं। शास्त्र में कहा है जह दीवा दीवसयं, पईप्पए सोय दीप्पए दोवो, दीव समा आयरिया, अप्पं च परं च दीवन्ति ।। अर्थात् जिस प्रकार दीपक स्वयं प्रकाशमान होता हुआ अपने स्पर्श से अन्य सैकड़ों दीपक जला देता है, उसी प्रकार आचार्य स्वयं ज्ञान ज्योति से प्रकाशित होते हैं एवं दूसरों को भी प्रकाशमान करते हैं। आपकी ज्ञान-ध्यान, तप-त्याग की अखंड ज्योति, सूर्य सदृश लाखों जनता को आधुनिकता की चकाचौंध से मोड़कर आध्यात्मिकता का प्रकाश देती रहे। भारतीय धरा के धवल संयम साधना के साधक पूज्य आचार्य देव के चरणों में अखंड साधना का अभिनंदन करता हूं और अभिवंदन करता हूं कि आप संयम-चारित्र की सुदीर्घ पर्याय के साथ संघ एवं शासन की सेवा करते रहें। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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