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________________ वह प्रतीक बन गया है । कालिदास कह गये हैं कि महान लोगों की आकांक्षाएं भी महान् ही होती हैं-'उत्सर्पिणी खलु महतां प्रार्थना ।' बाहुबली मानव-उत्कृष्टता के उच्चतम शिखर पर पहुंचे हुए थे। मानव इतिहास में इससे अधिक प्रेरणादायक उदाहरण और कोई नहीं मिल सकता। बोप्पण के वृत्त की एक पंक्ति यहां उद्धृत करने योग्य है। 'एमक्षिति सम्पूज्यमो गोम्मटेश्वर जिनश्रीरूप आत्मोपमम् !' इससे हमें वाल्मीकि की सुविदित उपमा का स्मरण हो आता है-'गगनं गगनाकारं सागरं सागरोपमम् ।' गोम्मट की भव्य तथा विशाल उत्कृष्टता अद्वितीय है । (मैसूर, पृ० १४३) भगवान् गोम्मटेश के इसी भव्य एवं उत्कृष्ट रूप के प्रति श्रद्धा अर्पित करने की भावना से देश की लोकप्रिय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भगवान् बाहुबली सहस्राब्दी प्रतिष्ठापना समारोह के अवसर पर हेलीकाप्टर से गगन-परिक्रमा करते हुए भगवान् गोम्मटेश का सद्यजात सुगन्धित कुसुमों एवं मंत्र-पूत रजत-पुष्पों से अभिक किया था। इसी अवसर पर आयोजित एक विशाल सभा में भगवान गोम्मटेश के चरणों में श्रद्धा अभिव्यक्त करते हुए उन्होंने इस महान कला-निधि को शक्ति और सौन्दर्य का, बल का प्रतीक बतलाया था। महामस्तकाभिषेक के आयोजन की संस्तुति करते हुए उन्होंने इस अवसर को भारत की प्राचीन परम्परा का सुन्दर उदाहरण कहा था । भगवान् गोम्मटेश की विशेष वन्दना के निमित्त वह अपने साथ आस्था का अर्घ्य --चन्दन की माला, चांदी जड़ा श्रीफल और पूजन सामग्री ले गई थीं। उपर्युक्त सामग्री को आदरपूर्वक श्रवणबेलगोल के भट्टारक स्वामी को भेंट करते हुए उन्होंने कहा था-"इसे देश की ओर से और मेरी ओर से, अभिषेक के समय बाहुबली के चरणों में चढ़ा दीजिए।" राष्ट्र की ओर से भगवान् बाहुबली के चरणों में नमन करती हुई श्रीमती इन्दिरा गांधी ऐसी लग रही थी जैसे मूर्ति प्रतिष्ठापना के समय इन्द्रगिरि पर्वत पर जनसाधारण की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक हजार वर्ष पूर्व की पौराणिक माता गुल्लिकायाज्जी का अनायास ही अवतरण हो गया हो ! वास्तव में माता गुल्लिकायाज्जी एवं लोकनायिका श्रीमती इन्दिरा गांधी भारत की समग्र चेतना का प्रतिनिधित्व करने वाली महान महिलाएँ हुई हैं। इन दोनों नारीरत्नों द्वारा किए गए भक्तिपूर्वक अनुष्ठान में सम्पूर्ण राष्ट्र की निष्ठा स्वयमेव प्रस्फुटित हो रही है । भगवान् गोम्मटेश अब सिद्धालय में विराजमान हैं और रागभाव से अतीत हैं । अत: आयोजनपूर्वक पूजा-अर्चा का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। किन्तु पूजा-अर्चा की स्थिति में साधक भगवान् गोम्मटेश की अनुभूतियों से तादात्म्य स्थापित कर अक्षय सुख का अर्जन कर लेता है। इसीलिए भगवान् गोम्मटेश का प्रेरक चरित्र शताब्दियों से लोकमानस की श्रद्धा का विषय रहा है। No0000 [विशेष : प्रस्तुत निबन्ध में चचित शिलालेख जैन शिलालेख संग्रह (भाग एक) से उद्धृत किये गए हैं।] आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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