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साहूपुरी नेमिनाथ दिगम्बर मन्दिर में दिया है जिससे दक्षिण भारत में धर्म-प्रभावना हो रही है। आपके शिष्य और शिष्यायें वर्तमान में करीब ६० से अधिक हैं । कितने ही समाधि लेकर स्वर्गवासी बन गये हैं। आपका चातुर्मास सूरतनगरी में था । तब श्री १०८ पायसागर महाराज की आज्ञा से सूरत दिगम्बर जैन समाज ने आपको आचार्य पद से अलंकृत किया। आप जब गुलबर्गा गये थे तब आपको नगरी में प्रवेश करने से मुसलमानों ने रोका। आप वहीं पर बैठ गये । उसी समय नवाब हैदराबाद को समाचार मिला कि एक नग्न दिगम्बर जैन साधु को रोक दिया गया है और वह अन्न-जल का त्याग किये हुए बैठा है। यह समाचार पाकर नवाब हैदराबाद आये और आचार्य श्री को भेंट सहित नमस्कार किया और किले के मन्दिर में दर्शन करने को साथ-साथ गये।
आपके कामविकार की अनेक बार परीक्षा की गई है परन्तु आपके मन में कभी कोई विकार उत्पन्न नहीं हुआ तथा लोग आपके समक्ष नतमस्तक हो गए। आप सरल स्वभावी और स्पष्टवक्ता हैं। आपको प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग तथा द्रव्यानुयोग का पूर्णरूप से ज्ञान है । आपने जहां कहीं विहार किया वहां के सभी जैन एवं जैनेतर समाज विशेष रूप से लाभान्वित हुए हैं। आपके द्वारा अयोध्या में स्थापित देशभूषण गुरुकुल में अनेक छात्र तथा कोथली गुरुकुल से करीब ४५० विद्यार्थी निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। छात्रों के भोजन की व्यवस्था आश्रम से ही होती है । गरीब एवं अनाथ बालकों को भोजन और वस्त्र तथा पुस्तकें भी गुरुकुल. से ही प्राप्त होती हैं । आपकी प्रेरणा से गुरुकुल को करीब १०० एकड़ जमीन भी प्राप्त हो गई है। आपकी कृपा से गुरुकुल में एक हाथी भी रखा गया है जो पंचकल्याण-प्रतिष्ठाओं के समय यत्र-तत्र जाया करता है। इस प्रकार आपके द्वारा धर्मप्रभावना सम्बन्धी अनेक महान् कार्य हुए हैं और होते रहेंगे । मैं यही कामना करता हूं कि महाराज चिरायु रहें और इसी प्रकार उनके द्वारा धर्मप्रभावना होती रहे एवं मुझ अल्प मति का भी कल्याण हो । मेरी हार्दिक कामना है कि आपका आशीर्वाद सदैव मेरे साथ रहे।
श्री महावीर वाणी के उदघोषक
आचार्यकल्प श्री श्रेयांससागर जी (श्री १०८ आचार्य सुमति सागर जी महाराज के शिष्य)
वर्तमान युग में आचार्यरत्न १०८ श्री देशभूषण जी महाराज ने भगवान् महावीर की वाणी को सर्वसाधारण तक पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण योग दिया है। आप संयम, त्याग एवं तपश्चर्या की साक्षात् मूर्ति हैं। आप जैसे लोकोपकारी धर्मपरायण सन्त की मैं हृदय से वन्दना करता हुआ यह कामना करता हूं कि उनकी वरद् छाया चतुर्विध संघ पर निरन्तर बनी रहे।
कालजयी व्यक्तित्व
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