SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह कह कर वह अदृश्य हो गया। इधर-उधर देखा किन्तु दिखाई नहीं दिया । आपका वचन कभी भी खाली नहीं जाता है। जो आप अपने मुख से कहते हैं वह अत्यन्त सत्य निकलता है। एक समय रघुवीर सिंह जैना वाच वालों का अवसान समय निकट था। तब प्रेमचन्द टेपरिकार्डर लेकर महाराज श्री के पास आये। महाराज श्री ने कहा कि रघुवीर सिंह जी आप सावधान रहो, अब आपका यह पर्याय छूटने का समय आ गया है, और अभी २ बजे हैं, ठीक चार बजे समाप्त हो जाओगे। वैसा ही हुआ। एक समय महाराज श्री माउंट आबू के दर्शन कर मार्ग से लौट रहे थे कि साथ में चलने वाले दस-बीस श्रावक कहने लगे। "महाराज आप के कमण्डलु के पानी को तो लोगों ने पी ही लिया । हम को बहुत ज़ोर से प्यास लग रही है । नजदीक में ग्राम भी नहीं है । गर्मी भी अधिक पड़ रही है।" तब महाराज श्री ने कहा कि, "घबड़ाओ मत, जाओ उस पत्थर को उठाओ और मन इच्छित पानी पीओ।" साथ में चलने वालों ने विचार किया कि यहां कहां पानी होगा, पर गुरु की वाणी है, चलो देखें । तब पत्थर को उठाया तो उसके नीचे से पानी निकला। सबने पेट भर कर पिया और चल दिये। जंगल में विचरन करने वाले लोगों को भी आनंद हुआ कि जहां कोसों तक पानी नहीं था वहां पानी निकल आया। यह सब चमत्कार निर्ग्रन्थ गुरुओं का ही है । आचार्य श्री उत्तर भारत से विहार कर दक्षिण में गये तब यह भाव हुआ कि दक्षिण में एक गुरुकुल का निर्माण कराया जाये ताकि गरीब श्रावकों के बच्चे धर्म शिक्षा व लौकिक शिक्षा प्राप्त कर सकें। इसलिए महाराज ने कोथली के निकटस्थ एक स्थान को एक चर्मकार से अल्प मूल्य में खरीद लिया । मन्दिर का निर्माण कराकर उसमें चौबीस तीर्थंकरों की मूर्ति विराजमान करायीं। मूलनायक सात फुट उत्तुंग, खड़गासन आदिनाथ भगवान् की मूर्ति और मानस्तम्भ को बनवाकर प्रतिष्ठापूर्वक विराजमान किया तथा गुरुकुल की और हाईस्कूल की भो स्थापना की। इसके उपरान्त भी एक छोटी-सी पहाड़ी को खरीद लिया। उस पर पुनः नवीन मन्दिर का निर्माण कराने की समाज को प्रेरणा दी जिससे शान्ति, कुन्थु, अरहनाथ जी की १६ फुटी तथा अन्य भूत भावी वर्तमान और विदेह स्थित बीस तीर्थंकरों की मूर्तियों की पंचकल्याणकपूर्वक प्रतिष्ठा संभव हो सकी। यह मंदिर बहुत विशाल बना हुआ है जहाँ दर्शनार्थी एवं यात्रियों का तांता लगा रहता है। शिखर के ऊपर ही मानस्तम्भ, नन्दीश्वर की रचना, समोशरण मन्दिर इत्यादि हैं। श्री आचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज को जैन समाज ने अनेक पदों से अलंकृत किया है-भारतगौरव, चारित्रशिरोमणि, जगतभूषण, विद्यालंकार इत्यादि । अब आप की उम्र करीब ८० वर्ष है। फिर भी आप निरन्तर तीर्थों का निर्माण कराने की प्ररणा करते हैं । आपके प्रधान शिष्य बाल ब्र० श्री उपाध्याय श्री विद्यानंद जी, श्री १०८ आचार्य सुबल सागर जी व श्री १०८ आचार्यकल्प चारित्रशिरोमणि ज्ञानभूषण, श्री १०८ बाहुबली इत्यादि धमप्रभावक हैं। आप निरंतर धर्मध्यान में तथा स्वाध्याय में रत रहते हैं। आप की दृष्टि में कांच और कांचन समान हैं। आपने क्रोध, मान, माया एवं लोभ कषाय को जीत लिया है। आप समरस के स्वादी हैं। आपने दक्षिण भारत के अनेक मंदिरों में पड़े हुए विघ्नों को दूर कर उन मंदिरों में जिन बिम्बों की पंचकल्याण प्रतिष्ठा करवाकर तथा अक्कीवाट, कोल्हापुर, भिण्डी गली, जयसिंहपूर, दत्तवाड़ तथा मानगाम इत्यादि मंदिरों में मूर्तियां लाकर रखी हैं। मंदिर भी बनकर तैयार हैं। समाज में एकता नहीं होने के कारण वे मन्दिर वर्षों से दुर्दशाग्रस्त थे। अब आप का विहार हुआ तो प्रवचन सुनने मात्र से ही इन मन्दिरों के जीर्णोद्धार हेतु हजारों रुपयों की थैली लोग देने लग गये। यह सब आपके वचन की ही गरिमा है। आपने अपने मुख से हंसी में भी किसी को कुछ शब्द कह दिया तो वह अनिवार्य रूप से सत्य ही निकलता है, यह हमने प्रत्यक्ष भी अनुभव किया है। आप जब खानिया जी में थे तब,माली को सर्प ने काट लिया। यह समाचार आपको लोगों ने दिया तब आपने कहा कि कुछ नहीं होगा, निर्भय रहो । वैसा ही हुआ। एक समय आप नित्यक्रिया करने के लिए जंगल में पुलिया के पास गये थे। वहाँ पर पते और पत्थर बहुत पड़े थे। आपने पत्तों को पीछिका से दूर किया और नित्यक्रिया के लिए बैठ गये। तब एक पत्थर के नीचे से सर्प निकला और आपके पैर के एक भाग को मंह में दबा लिया। आपका चर्म कठोर होने से उस साँप के ही दो दांत टूट गये। संघ में कोलाहल मच गया कि अब क्या होगा? रात्रि के समय शाहजहांपुर के कलेक्टर साहिब आये और महाराज से कहने लगे कि नीम चबाओ। तब महाराज ने कहा कि मुझे कुछ भी नहीं होगा। दूसरे दिन उन दांतों को लोगों ने निकाला और आश्चर्यचकित हो गए। आपके साथ मार्ग में पंडित बलभद्र जी चल रहे थे। तब आपने पंडित जी से कहा कि पंडित जी आप को लाभ होने वाला है। यह सुनकर पंडित जी आश्चर्य में पड़ गये। दूसरे दिन पंडित जी आगरा गये तो वहां उनको किसी ने तीन हजार रुपये दिये। आपने एक रथ का निर्माण करवाकर कोल्हापुर ६६ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy