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हैं। चतुविशति तीर्थकरों के अजान के लिए मोसले के कुछ सज्जनों का देने को प्रतिज्ञा की गोम्मटेश्वर द्वार पर उत्कीर्ण एक लेख के अनुसार बेल्गुल के समस्त जौहरियों ने गोम्मटदेव और पार्श्वदेव के पुष्प पूजन के लिए वार्षिक चन्दा देने का संकल्प किया था ।
प्रतिमा के दुग्धाभिषेक के लिए द्रव्य का दान करना अत्यन्त श्रेष्ठ माना जाता था। कोई भी व्यक्ति कुछ सीमित धन का दान करता था । उस धन के ब्याज से जितना दूध प्रतिदिन मिलता था, उससे दुग्धाभिषेक कराया जाता था । आदियण्ण ने गोम्मटदेव के नित्याभिषेक के लिए चार गद्याण का दान किया, जिसके ब्याज से प्रतिदिन एक 'बल्ल' दूध मिलता था । हुलिगेरे के सोवण्ण ने पांच माण का दान दिया, जिसके व्याज से प्रतिदिन एक 'बल्ल' दूध मिलता था। इसी प्रकार दुग्धदान के लिए अन्य उदाहरण भी आलोच्य अभिलेखों में देखे जा सकते हैं । अष्टादिक्पालक मण्डप के स्तम्भ पर खुदे एक लेख के अनुसार पुट्ट देवराज अरसु ने गोम्मट स्वामी की वार्षिक पाद पूजा के लिए एक सौ वरह का दान दिया तथा गोम्मट सेट्टि ने बारह गद्याण का दान दिया। इसके अतिरिक्त श्रीमती अवे ने चार गद्याण का तथा एरेयङ्ग ने बारह गद्यान का दान दिया ।
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(iv) बस्ति (भवन) निर्माण – बानोच्य अभिलेखों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उस समय बस्ति निर्माण भी दान परम्परा का एक अंग था। ये बस्तियाँ पूर्वजों की स्मृति में जन साधारण के कल्याणार्थ बनवाई जाती थी। आज भी पार्श्वनाथ, कत्तले, चन्द्रगुप्त, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, चामुण्डराय शासन, मजिगण एरडकट्टे सतिगन्धवारण, तेरिन, शान्तीश्वर, चेन्नण्ण, ओदेगल, चौबीस तीर्थंकर भण्डारि, अक्कन, सिद्धान्त, दानशाले मज्जावि बादि बस्तियों को खण्डितावस्था में देखा जा सकता है। ये गर्भगृह, सुखनासि, नवरङ्ग मानस्तम्भ, मुखमण्डप आदि से युक्त होती थीं।
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इन्हीं उपरोक्त बस्तियों के निर्माण की गाथा ये अभिलेख कहते हैं । दण्डनायक मङ्गरय्य ने कत्तले बस्ति अपनी माता पोचब्बे के लिए निर्माण करवाई थी।" गन्धवारण बस्ति में प्रतिष्ठापित शान्तीश्वर की पादपीठ पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार" शान्तलदेवी ने इस बस्ति का निर्माण कराया था तथा अभिषेकार्थ एक तालाब भी बनवाया था ।" इसी प्रकार भरतय्य ने भी एक तीर्थस्थान पर बस्ति का निर्माण कराया, गोम्मटदेव की रङ्गशाला निर्मित कराई तथा दो सौ बस्तियों का जीर्णोद्धार कराया ।" इसके अतिरिक्त समयसमय पर दानकर्ताओं ने परकोटे इत्यादि का निर्माण करवाया था ।
(v) मन्दिर निर्माण - भारतवर्ष में मन्दिर निर्माण की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है । आलोच्य अभिलेखों में भी मन्दिर निर्माण के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। मन्दिरों का निर्माण प्रायः बस्तियों में होता था। राष्ट्रकूट नरेश मारसिंह ने अनेक राजाओं को परास्त किया तथा अनेक जिन मन्दिरों का निर्माण करवाकर अन्त में संल्लेखना व्रत का पालन कर बंकापुर में देहोत्सर्ग किया । * अभिलेखों के अध्ययन से इतना तो ज्ञात हो ही जाता है कि मन्दिरों का निर्माण प्रायः बेल्गोल नगर में ही किया जाता था क्योंकि यह नगर उस समय में जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र था। शासन बस्ति में पार्श्वनाथ की पादपीठ पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार " चामुण्ड के
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जै० शि० सं० भाग एक, ले० सं० ३६१.
- वही ल े० सं० ६१.
- वही ल े० सं० ६७.
- वहा- ले० सं० १३१.
- बही - ले० सं० ६४-६५
- वही - ले० सं० ६८.
- वही - ल े० सं० ८१.
- बही - ल े० सं० १३५.
- वही— ले० सं० ४६२.
= वही ले० सं० ६४.
- वही- ल े० सं० ६२.
- वही ले० सं० ५६.
- वही - ले० सं० ११५.
वही ल े० सं० ३८१.
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-वही - ल े० सं० ६७.
गोम्मटेश दिग्र्शन
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