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________________ जिनके अनुसार ग्राम दान दानशाला, कुण्ड, उपवन तथा मण्डप आदि की रक्षा के लिए किया गया। इस प्रकार हम अभिलेखों से यह जानते हैं कि धार्मिक कार्यों की सिद्धि के लिए ग्राम दान की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। (ii) भूमिदान-आलोच्य काल में ग्राम दान के साथ-साथ भूमि दान की भी परम्परा थी। श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में ऐसे अनेक उल्लेख मिलते हैं जिनमें भूमि दान के प्रयोजन का वर्णन मिलता है। मुख्यत: भूमिदान का प्रयोजन अष्टविध पूजन, आहार दान, मन्दिरों का खर्च चलाना होता था। कुम्बेनहल्लि ग्राम के एक अभिलेख के अनुसार वादिराज देव ने अष्टविध पूजन तथा आहार दान के लिए कुछ भूमि का दान किया। इसी प्रकार के उल्लेख अन्य अभिलेखों में भी मिलते हैं। श्रवण वेल्गोला के ही कुछ अभिलेखों में ऐसे उल्लेख मिलते हैं जिनमें दान की हुई भूमि के बदले प्रतिदिन पूजा के लिए पुष्पमाला प्राप्त करने का वर्णन है। गोम्मटेश्वर द्वार के दायीं ओर पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण एक अभिलेख के अनुसार बेल्गुल के व्यापारियों ने गङ्ग समुद्र और गोम्मटपुर की कुछ भूमि खरीदकर उसे गोम्मटदेव की पूजा हेतु पुष्प देने के लिए एक माली को सदा के लिए प्रदान थी। इसी प्रकार के वर्णन अन्य अभिलेखों में भी मिलते हैं । कुछ ऐसे भी अभिलेख हैं जिनमें बस्ति या जिनालय के लिए भूमिदान के प्रसंग मिलते हैं । मंगायि बस्ति के प्रवेश द्वार के साथ ही उत्कीर्ण एक लेख में वर्णन मिलता है कि पण्डितदेव के शिष्यों ने मंगायि बस्ति के लिए दोड्डन कट्ट की कुछ भूमि दान की। नागदेव मन्त्री द्वारा कपठपार्श्वदेव बस्ति के सम्मुख शिलाकुट्टम और रङ्गशाला का निर्माण करवाने तथा नगर जिनालय के लिए कुछ भूमिदान करने का उल्लेख एक अभिलेख में मिलता है । उस समय में भूमि का दान रोगमुक्त होने या कष्ट मुक्त तथा इच्छा पूर्ति होने पर भी किया जाता था। महासामन्ताधिपति रणावलोक श्री कम्बयन के राज्य में मनसिज की रानी के रोगमुक्त होने के पश्चात् मौनव्रत समाप्त होने पर भूमि का दान किया। लेख में भूमि दान की शर्त भी लिखी हुई है कि जो अपने द्वारा या दूसरे द्वारा दान की गई भूमि का हरण करेगा, वह साठ हजार वर्ष तक कीट योनि में रहेगा। गन्धवारण बस्ति के द्वितीय मण्डप पर उत्कीर्ण लेख में पट्टशाला (वाचनालय) चलाने के लिए भूमि दान का उल्लेख है। भूमिदान से सम्बन्धित अनेक उल्लेख अन्य अभिलेखों में भी मिलते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि तत्कालीन दान परम्परा में भूमि दान का महत्त्वपूर्ण स्थान था, जिससे प्रायः सभी प्रयोजन सिद्ध किए जाते थे। (iii) द्रव्य (धन) दान-श्रवणबेल्गोला के अभिलेखों में नगद राशि को दान स्वरूप भेंट करने के उल्लेख मिलते हैं। उस धन से पूजा, दुग्धाभिषेक इत्यादि का आयोजन किया जाता था। गोम्मटेश्वर द्वार के पूर्वी मुख पर उत्कीर्ण एक लेख के अनुसार कुछ धन का दान तीर्थंकरों के अष्टविध पूजन के लिए किया गया था। चन्द्रकीति भट्टारकदेव के शिष्य कल्लल्य ने भी कम से कम छह मालाएं नित्य चढ़ाने के लिए कुछ धन का दान किया।" राजा भी धन का दान किया करते थे । वे जिस ग्राम में निर्मित मन्दिर इत्यादि के लिए दान करना होता था, उस ग्राम के समस्त कर इस धार्मिक कार्य के लिए दान कर देते थे। राजा नारसिंह देव ने भी गोम्मटपुर के टैक्सों का दान चतुर्विशति तीर्थकर बस्ति के लिए किया था। द्रव्य दान की एक विधि चन्दा देने की परम्परा भी होती थी। चन्दा मासिक या वार्षिक दिया जाता था। मोसले के बड्ड व्यवहारि बसववेट्टि द्वारा प्रतिष्ठापित चौबीस तीर्थंकरों के अष्टविध पजन के लिए मोसले के महाजनों ने मासिक चन्दा देने की प्रतिज्ञा की । मासिक के अतिरिक्त वार्षिक चन्दा देने के उल्लेख भी मिलते १. २. ३. ४. ६. जैन शि० सं भाग एक ले० सं० ४६५. वहीं-ले० सं०४६६ एवं ४६६ -वही-ले० सं० २. -वही-ले० सं०८८-८९. -वही-ले० सं० १३३. -बही-ले०सं० १३०. -बही-ले० सं० २४. -ले० सं०५१. वही- ले० सं० ८४, ६६, १२६, १४४, १०८, ४५४, ४७६-७७,४८४, ४१०, ४६८, ५... -वही-ले० सं० ८७. -वही-ले सं०१३ -वही-लै० सं० १३८. -वही-ले० सं० ८६. ११. ११. ११. २२ आचार्यरल भी देशभूषण जी महाराज अभिनन्दर पन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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