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है कि चडि सेट्टि ने मेरी भूमि रहन से मुक्त कर दी, इसलिए मैं सदैव एक संघ को आहार दूगा । अष्टादिक्पालक मण्डप के एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख' में कहा है कि चौडी सेट्टि ने हमारे कष्ट का परिहार किया है, इस उपलक्ष्य में मैं सदैव एक संघ को आहार दूंगा। जबकि इसी स्तम्भ पर उत्कीर्ण दूसरे अभिलेख में आपद् परिहार करने पर वर्ष में छह मास तक एक संघ को आहार देने की घोषणा की है। इस प्रकार आलोच्य अभिलेखों के समय में आहार दान की परम्परा विद्यमान थी।
लौकिक दान-जो दान साधारण व्यक्ति के उपकार के लिए दिया जाता है, उसे लौकिक दान कहते हैं। इसके अन्तर्गत औषधालय, स्कूल, प्याऊ, बस्ति, मन्दिर, मूर्ति आदि का निर्माण व जीर्णोद्धार तथा ग्राम, भूमि, द्रव्य आदि के दान सम्मिलित किए जाते हैं। आलोच्य अभिलेखों में इस दान के उल्लेख पर्याप्त मात्रा में विद्यमान हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है
(i) ग्राम दान-श्रवणबेल्गोला के अभिलेखों में ग्राम दान सम्बन्धी उल्लेख प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। ग्रामों का दान मन्दिरों में पूजा, आहारदान या जीर्णोद्धार के लिए किया जाता था। इन ग्रामों की आय से ये सभी कार्य किए जाते थे। शान्तल देवी द्वारा बनवाये गए मन्दिर के लिए प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव को एक ग्राम का दान दिया गया। मैसूर नरेश कृष्णराज ओडेयर ने भी जैन धर्म के प्रभावनार्थ बेल्गुल सहित अनेक ग्रामों को दान में दिया। कभी-कभी राजा अपनी दिग्विजयों से लौटते हुए मूर्ति के दर्शन करने के उपरान्त ग्राम दान की घोषणा करते थे। गोम्मटेश्वर मूर्ति के पास ही पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण एक अभिलेख के अनुसार राजा नरसिंह जब बल्लाल नृप, ओडेय राजाओं तथा उच्चङ्गि का किला जीतकर वापिस लौट रहे थे तो मार्ग में उन्होंने गोम्मटेश्वर के दर्शन किए तथा पूजनार्थ तीन ग्रामों का दान दिया। चन्द्रमौलि मन्त्री की पत्नी आचलदेवी द्वारा निर्मित अक्कन बस्ति में स्थित जिन मन्दिर को चन्दमौलि की प्रार्थना से होयसल नरेश वीर बल्लाल ने बम्मेयनहल्लि नामक ग्राम का दान दिया। मन्त्री हुल्लराज ने भी नयकीति सिद्धान्तदेव और भानुकीति को सवणे ग्राम का दान दिया । बम्मेयनहल्लि नामक ग्राम के सम्मुख एक पाषाण पर उत्कीर्ण एक लेख के अनुसार आचल देवी ने बम्मेयनहल्लि नामक ग्राम का दान दिया।
इसी प्रकार कई अभिलेखों में आजीविका, आहार, पूजनादि के लिए ग्राम दान के भी उल्लेख मिलते हैं। शासन बस्ति के सामने एक शिलाखण्ड पर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार विष्णवर्द्धन नरेश से पारितोषिक स्वरूप प्राप्त हुए, 'परम' नामक ग्राम को गङ्गराज ने अपनी माता पोचलदेवी तथा भार्या लक्ष्मी देवी द्वारा निर्मापित जिन मन्दिरों को आजीविका के लिए अर्पण किया। महाप्रधान हुल्लमय ने भी अपने स्वामी होयसल नरेश नारसिंहदेव से पारितोषिक में प्राप्त सवणेरु ग्राम को गोम्मट स्वामी की अष्टविध पूजा तथा मुनियों के आहार के लिए दान दिया।" वीर बल्लाल राजा ने भी 'बेक्क' नामक ग्राम का दान गोम्मटेश्वर की पूजा.के लिए ही किया था।" कण्ठीरायपुर ग्राम के लेखानुसार" गङ्गराज ने पार्श्वदेव और कुक्कुटेश्वर की पूजा के लिए गोविन्दवाडि नामक ग्राम का दान दिया। चतुर्विशति तीर्थकर पूजा के लिए बल्लाल देव ने मारुहल्लि तथा बेक्क ग्राम का दान दिया।" शल्य नामक ग्राम का दान बस्तियों के जीर्णोद्धार तथा मुनियों की आहार व्यवस्था के लिए किया गया था। किन्तु आलोच्य अभिलेख में दो अभिलेख६ ऐसे हैं
१. जै०शि०सं० भाग एक, ले० सं० १००। २. -बही-ले० सं० १०१।
-वही ले० सं०५६ । -वही-ले० सं०८३ । -वही-ले० सं०६०। -वही-ले० सं० १२४
- वही-ले० सं० १३६. ८. -बही-ले० सं० १३७
-वही-ले० सं० ४६४. -वही-ले० सं० ५६. -वही-ले० स०५० -वही- ले० सं० १०७
-वही-ले० सं०४८६. १४. -बही-ले० सं० ४६१. १५. -बही-ले० सं० ४६३.
-वही-ले० सं० ४३३ एवं ४८.
गोम्मटेश दिग्दर्शन
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